कार्तिक पूर्णिमा पर शिव की नगरी में देवता मनाते हैं दिवाली : देव दीपावली

प्रत्येक कार्तिक पूर्णिमा को काशी में मनाया जाता है देव दीपावली

वाराणसी : विश्व के प्राचीनतम शहरों में से एक काशी है इसे शिव की नगरी भी कहते हैं । धर्म नगरी काशी अपने धार्मिक परंपराओं और रीति-रिवाजों के लिए प्रसिद्ध है । काशी शहर नहीं बल्कि पूरी सभ्यता है । यहां की परंपरा है विश्व में एक अलग पहचान बनाए हुए हैं ।  ऐसी ही कार्तिक पूर्णिमा को दीपोत्सव मानना यहां की एक परंपरा है । जिसे विश्व देव दीपावली के नाम से जानता है।

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मान्यता है कि इस दिन देवता स्वयं काफी में आकर दीप जलाते हैं । बनारस में कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी से गंगा महोत्सव की शुरुआत होती है जिसका समापन कार्तिक पूर्णिमा के दिन दीपोत्सव के रूप में किया जाता है । काशी के 84 घाटों को दीपमाला और लेजर लाइट से जगमग कर विश्व को काशी की धमक दिखाई जाती है ।

कार्तिक पूर्णिमा को ही त्रिपुरारी बने थे भगवान शिव

विद्वान काशी में देव दीपावली मनाने की बहुत सारी कथाओं के बारे में बताते हैं । इसमें से एक मान्यता यह भी है कि जब देवलोक त्रिपुर नाम के राक्षस के आतंक से तंग आ गया । तब सभी देवताओं ने महादेव से मदद मांगी । इसी दिन महादेव ने उस राक्षस का संहार कर देवताओं को उसके आतंक से मुक्त कराया था ।  त्रिपुर का संघार करने के कारण महादेव का नाम त्रिपुरारी पड़ा । 

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राक्षस के आतंक से  मुक्त होने के बाद देवता महादेव की नगरी काशी में आए और दीप उत्सव मना कर महादेव के प्रति अपना आभार व्यक्त किया ।  तभी से काशीवासी हर वर्ष शिव के विजय दिवस के रूप में देव दीपावली का आयोजन  करते हैं । देव दीपावली को लेकर एक कथा यह भी है कि जब काशी के महाराज दिवोदास ने काशी में देवताओं का प्रवेश वर्जित कर दिया था ।

देखे वीडियो : देव दीपावली पर्व

तब महादेव ने वेश बदलकर काशी में प्रवेश किया और पंचगंगा घाट पर स्नान कर ध्यान किया । तभी से काशी में देवताओं का प्रवेश पुनः सुलभ हो सका जिससे हर्षित होकर देवताओं ने काशी में दीपोत्सव मनाया । माना जाता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन आज भी देवता काशी में आते हैं । 

काशी में आधुनिक देव दीपावली का आरंभ

आजम काशी के  जिस भव्य देव दीपावली  को देख रहे हैं वह महज काशी के पंच गंगा घाटों पर कुछ दिए जलाकर शुरू की गई थी । सन 1995 में मंगला गौरी के महंत नारायण गुरु और काशी वासियों के सहयोग से इस पर की शुरुआत हुई थी ।

नारायण गुरु ने बनारस के चाय पान की दुकानों पर टीन रखवाए ताकि लोग उसमें घी तेल डालकर अपना सहयोग दे सकें । नारायण गुरु के नेतृत्व में 1990 तक यह पर काशी के 31 घाटों पर मनाया जाने लगा । इसके बाद इस दीपोत्सव को सभी घाटों तक विकसित करने के लिए मुहिम चलाई गई । केंद्रीय देव दीपावली महासमिति का गठन हुआ ।

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नारायण गुरु। / Decan herald

1995  तक समिति के सहयोग से काशी के न सिर्फ 84 घाटों तक बल्कि सभी तालाबों और कुंडों तक देव दीपावली का प्रकाश फैल गया । 1995 से 2000 के बीच में देव दीपावली ने विश्व में अपनी एक अलग पहचान बनाई। दिन प्रतिदिन इसकी ख्याति बढ़ती गई । आज आलम यह है कि कार्तिक पूर्णिमा को काशी दीप में और  विश्व काशी में हो जाता है।

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