आज विश्व परिवार दिवस,
आज विश्व परिवार दिवस है बहुत कम लोग इस दिवस के बारे में जानते होंगे । 1993 में यूएन की जनरल असेम्बली ने इस दिवस को मनाने की शुरुआत इस उद्देश्य से की ताकि अंतरराष्ट्रीय समुदायों को परिवार से जोड़ा जा सके । तभी से हर साल 15 मई को अंतरराष्ट्रीय परिवार दिवस मनाया जाता है ।
परिवार समाज की सबसे छोटी इकाई छोटी है या यूं कह सकते हैं कि परिवारोंं के ऊपर ही समाज की आधार शिला रखी जाती है ।परिवार से ही समाज या समुदाय ,समाज से देश और देश से विश्व बनता है ।
भारतीय परिवार
भारतीय समाज के आत्मा से निकली एक उक्ति है ” वसुधैव कुटुम्बकम् ” अर्थात् ये सम्पूर्ण पृथ्वी ही हमारा परिवार है । भारतीयों के संस्कारों को प्रदर्शित करने वाले हमारे धर्म ग्रंथों में भी परिवार के गरिमा और महत्व को बताया गया है । एक आदर्श परिवार के रूप में संयुक्त परिवार को स्वीकार किया गया है ।जहाँ एक ही वंश की कई पीढ़िया साथ मेंं रहती हो जहाँ सबका भोजन एक ही रसोई में बनता हो । ऐसे परिवार को संयुक्त परिवार कहते हैं ।
आदर्श संयुक्त परिवार
एक आदर्श संयुक्त परिवार वो है जिसमें लोकतांत्रिक व्यवस्था हो । जहाँ सत्ता तो घर के मुखिया के ही हाथ मेंं हो पर वो तनाशाह न हो ।घर के सभी सदस्यों को महत्व दिया जाता हो उनमें आपसे में प्रेम और सम्मान की भावना हो ।
सयुंक्त परिवार के फायदे
• भरतीय समाज में संयुक्त परिवार को अक्सर ही एकांकी परिवार की अपेक्षा ससक्त ओर सम्मानीय समझा जाता है । क्योंकि संयुक्त परिवार में एकता होती है ।किसी भी मुसीबत का सामना वो साथ मिलकर करते हैं ।परिवार के सभी सदस्यों की जिम्मेदारियां बाटी हूई होती है जिससे किसी एक व्यक्ति पर बोझ नही पड़ता । इसीकारण संयुक्त परिवार में उन्नति होती है ।
• संयुक्त परिवार में ये आवश्यक नहींं होता कि घर में सभी व्यक्तियोंं के पास रोजगार हो । इसी कारण परिवार का विकास धीमी गति से होता है पर स्थायी रूप से होता है । आपसी प्रेम और जुड़ाव के कारण पतन की संभावना कम होती है ।
• संयुक्त परिवार के बच्चे भी अच्छे संस्कारों वाले होते हैं और आगे चल कर अच्छे नागरिक वह अच्छे मनुष्य बनते है । बचपन से ही बच्चों को नैतिक मूल्य व्यवहारिक तौर पर सिखाये जाते है । अर्थात जिन बातों को अन्य बच्चे किताबों में सिखाते हैं संयुक्त परिवार के बच्चे उसे आपने दैनिक जीवन में करके उसका अनुभव लेते हैं ।
जैस बड़ो का सम्मान , छोटो से प्रेम , सबकी सेवा करना , सभी की इच्छाओं का ध्यान रखना , लोगों को प्रसन्न रखना और कभी- कभी तो किसी को ठेस ना पहुँचे इसलिए अपने सुखोंं का त्याग कर देना , स्वयं से पहले परिवार के बारे में सोचना । दूसरों की खुशी में खुश होना और गम में दुःखी होना ।ये सारे गुण संयुक्त परिवार के बच्चें खुद ही सिख जाते हैं उन्हें पता होता है कि सबके साथ सामंजस्य बना कर कैसे चलना है । विकट परिस्थितियों में स्थिर कैसे रहना है । और भी बहुत से उच्च कोटी के संस्कार होते हैं जो संयुक्त परिवार में बच्चों को मिलते हैं । जो उन्हें अच्छा और सफल इंसान बनाते हैं ।
भारत में परिवारों का बदलता स्वरूप
भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल से ही संयुक्त परिवार का ही महत्व रहा है । भारती संस्कृति में बड़ो के आशीर्वाद को भगवान का आशीर्वाद समझा जाता है। किसी भी अच्छे काम के पूर्व बड़ो का आशीर्वाद लिया जाता हैं। पूजा तथा यज्ञ आदि के बाद सबका आशीष लेते है ।
हमारे समाज मेंं तो किसी शुभ कार्य से पहले सिर्फ जीवित व्यक्तियों का ही नहींं अपितु मृत पुर्वजों का भी आशीर्वाद आवश्यक माना जाता है ।जन्म , विवाद और मृत्यु के समय कुछ ऐसे रीति रिवाज होते हैं जो केवल विशेष रिश्तेदार ही कर सकते हैं जैसे जन्म के छठवें दिन बच्चे को उसकी बुआ काजल लगती है ऐसे ही बहुत सी रस्मे है जिसमें संयुक्त परिवार की आवश्यक होती है इस तरह से हम देख सकते हैं कि हमारी संस्कृति ने संयुक्त परिवार को कितना महत्व दिया है ।
आज हमारा समाज हमारी संस्कृति को भूल रहा हैं । वैश्विक करण के इस दौर में आर्थिक विकास के लालच में समाज नैतिक विकास को नजरअंदाज कर रहा है जो नैतिक विकास केवल एक संयुक्त परिवार में ही संभव है । लोग अधिक आर्थिक लाभ कमाने के चक्कर मेंं आपने परिवार और गांव को छोड़कर शहर आये और वहींं का बन कर रह गए । वहींं आपने परिवार बसा लिया ,संयुक्त परिवार को तोड़ कर एकाकी परिवार बना लिया ।इसी प्रकार भारत मेंं एकाकी परिवार बनना शुरू हुए ।
आज स्थिति ये है कि अपनी पत्नि ओर बच्चे को ही लोग अपना परिवार कहते हैं और मानते हैं । इसी कारण लोगों को सारे मुसीबतों का सामना भी अकेले करना पडता है । उनके संस्कारों में स्वार्थ आ चुका है और वो आपने बच्चों को भी यही संस्कार देते है । एकांकी परिवार में बच्चों को अच्छी शिक्षा और स्वतन्त्रता तो मिल जाती है पर अच्छा संस्कार नहींं मिल पाता है ।
वो भी आपने माता- पिता को ऐसे ही छोड़ देते हैं जिस प्रकार उनके माता पिता ने उनके दादा- दादी को छोड़ा था । वो भी आपने भाई -बहन से वैसे ही दूर हो जाते हैं जिस प्रकार उनके माता -पिता आपने भाई -बहन से दूर हुए थे । इसी कारण आज हमारी संस्कृति पतन की और जा रही है क्योंकि अब भारतीय संस्कृति की आधारशिला हिल चुकी हैं ।
जिसका कारण चाहे कुछ भी हो पर परिणाम बहुत ही बुरा हो रहा है ।व्यक्तिवाद की प्रवृत्ति बढ़ रही है जिससे व्यक्ति स्वार्थी बनता जा रहा है । जो ना ही समाज के लिए उचित है ना देश के लिए । वसुधैव कुटुम्बकम वाले भारत मेंं आज छोटे- छोटे कुटुंब बन रहे हैं जो अंतिम रूप में भारतीय संस्कृति का नाश ही है ।
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