एक और खामोश बलिदानी ; मणीन्द्र नाथ

20 जून ‘मणीन्द्र नाथ की पुण्यतिथि

देश की आजादी के लिए ऐसे अनेक वीरों ने अपने प्राण दे दिए जिनके नाम तक हमें नहीं पता । ऐसे अनेक गुनमनाम क्रन्तिकारी है , जिन्होंने अपने वर्तमान को जलाकर हमारे भविष्य को बनाया है ।

Screenshot 20210620 141632 Chrome
thewebnews.in

बहुत से क्रांतिकारी ऐसे हैं जिन्हें हम जानते हैं जिनके बारे में हमनें इतिहास में पढ़ा है लेकिन बहुत से क्रांतिकारी ऐसे भी है जिनका न ही कोई इतिहास जानता है । और ना ही कोई जानने की कोशिश करता है । ऐसे महान क्रांतिकारीयों की सूची बहुत लंबी है उसी सूची का एक नाम है मणीन्द्र नाथ जिनकी आज पुण्यतिथि है ।

देश के लिए अपने मामा की हत्या की

भारत की आजादी में बनारस के लालों का बलिदान बहुत ही अहम था । अंग्रेजों से लोहा लेने के लिए योजनाएं एवं योद्धा यहीं तैयार होते थे । बनारस के पांडेय घाट के रहने वाले थे मनींद्र नाथ । इनका जन्म 13 जनवरी 1909 में हुआ था । छोटी सी उम्र में देश के लिए बलिदान होने की भावना से ये हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन से जुड़ गए । ये राजेन्द्र लोहाड़ी को अपना क्रांतिकारी गुरु मानते थे ।

काकोरी कांड में इनके बहुत से साथियों के साथ ही राजेंद्र लोहाड़ी को भी गिरफ्तारी कर फाँसी दे दी गयी । अपने साथियों के इस शहादत का जिम्मेदार वो अपने मामा जितेन्द्र बेनर्जी को मानते थे । जो की सीआईडी में डिप्टी सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस और काकोरी कांड के इन्वेस्टिगेशन अधिकारी भी थे । और ब्रिटिश सरकार ने उन्हें मनींद्र नाथ को पकड़ने को कहा था ।

एक दिन दोनों मामा भांजा गोदौलिया के मारवाड़ी अस्पताल के सामने टकरा गए । जेएन बेनर्जी ने मनिद्रनाथ को सरेंडर करने को कहा तब तक मणीन्द्र नाथ ने उनपर अपनी पिस्तौल की तीनों गोलियां दाग दी । औऱ खुद को पुलिस के हवाले कर दिया ।

जेल में आमरण अनशन कर त्यागे अपने प्राण

गाँधी जी के अनशनों के बारे में तो पूरी दुनियां जानती है । पर भारत के गर्भ से और भी कई महान अनशनकारी निकले हैं । जिनमें से एक मणीन्द्र नाथ भी है । 13 जनवरी 1928 को उन्हें 10 वर्षों की जेल और 3 वर्ष.तन्हाई की सजा मिली । 20 मार्च 1928 को उन्हें केंद्रीय कारागार फतेहगढ़ भेज दिया गया ।

वहाँ क्रांतिकारी चंद्रमा सिंह की बेरहमी से पिटाई के विरोध में चन्द्रमा सिंह और अन्य क्रांतिकारियों के साथ मणीन्द्र नाथ भी अनशन पर बैठ गए । गुप्त रणनीति के तहत शिव वर्मा , यशपाल सिंह , मन्मनाथ गुप्ता , रमेशचंद्र गुप्ता ने अपना अनशन तोड़ दिया । लेकिन मनींद्र नाथ ने अपना अनशन नहीं तोड़ा ।

अंत में 20 जून 1934 में मन्मनाथ के गोद में सिर रखकर अपने प्राणों को देश के लिए निछावर कर दिया ।
हमारे देश के एक और लाल ने देश के लिए अपने प्राणों की आहूति दे दी । उसके लिए जितना भी कहा जाए कम ही है ।

इसे भी पढ़िए…मिल्खा सिंह- उड़न सिख एक लम्बी दौड़ के लिए उड़ गया,

Table of Contents

Scroll to Top