ना वरुणा ना अस्सी फिर काहे का वाराणसी

कब तक लड़ पाएगी वरुणा अपने अन्त से

भारत की संस्कृति से जुड़ी वरुणा नदी भी अस्सी की तरह अंत के निकट है सैकड़ों गांव को जीवन देने वाली वरुणावती आज अपनी अंतिम साँसे गिन रही है । ना जाने कब लेगा प्रशासन वरुणा की सुध ।

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भारतीय संस्कृति में नदियों को देवी का दर्जा दिया गया है क्योंकि उनके अमृत रूपी जल से हमेंं जीवन मिलता है। लेकिन अफसोस उसी भारत में आज लगभग सभी बड़ी नदियांं प्रदूषण का शिकार हैं औऱ छोटी नदियों के अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह लगा है ।

ऐसी ही कर छोटी नदी है वरुणा जो जौनपुर , प्रयागराज और प्रतापगढ़ के सीमा पर स्थिति इनऊछ ताल के मैलहन झील से निकती है औऱ 202 किलो मीटर का सफर तैय करती हुई काशी में आकर मोक्षदायिनी गंगा में मिलती है । और गंगा बन जाती है । पुराणों में वरुणावती नाम से इस जानते हैं ।

परम्पराओं से भी प्राचीन नगरी काशी का नया नाम वाराणसी इसी वरुणा और अस्सी को मिला के रखा गया है । लेकिन आज इन दोनों ही नदियों की दयनीय स्थिति है । अस्सी तो नाल बन ही चुकी है और वरुणा केवल बाढ़ के दोनों में ही नदी लगती है । जिस नदी के रेत से प्रभु राम ने रामेश्वरम में शिव मंदिर की स्थापना की थी । जिस वरुणा में स्नान करके लोग मंदिरो में पुजा करने जाते थे उसी वरुणा में आज शहर का कचरा बहता है सीवर का पानी बहता है । जिससे पूरी नदी में जहरीले झाग बन चुके हैं । नदी सफेद झाग से ढक गयी है ।

लोगोंं ने नदी की छाती तक अवैध कब्जा कर मकाने बना ली है । और प्रशासन मूकदर्शक बना खड़ा है । ऐसा नहींं है कि प्रशासन ने कोई काम नहींं किया । नदी को साफ वह पुनर्जीवित करने के लिए सैकड़ों योजनाएं बनायी गयी है और बनती रहेगी। पर सिर्फ कागज़ों पर और फिर उन कागजों को भी नदी में बहा दिया जाएगा हमेशा की तरह ।

आज वरुणा बेचारी तरस गयी हैं कि कोई उनके जल से आचमन कर ले। कोई उनके जल से शिव लिंग का अभिषेक करें । लेकिन हमने वरुणा के निर्मल जल को इतना प्रदूषित कर दिया है कि जिस वरुणा के किनारे कभी सुकून मिलता था। आज वहाँ एक पल ठहरना मुश्किल है । सच तो ये है कि इस भागती दुनिया में ठहरने की फुर्सत किसके पास है । अगर एक पल कोई वहाँ ठहरे तो पता चलेगा कि अपनी माँ का अपनी ही संतानो के हाथों अंत कैसे किया जाता है । नदी को माँ कहते हैं ना हम भारतवासी तो क्या हम अपनी माँ के साथ सही कर रहे हैं ।

अजीब नहींं लगता देवी देवताओं वाले , प्रकृति को ब्रह्म मानने वाले भारत मेंं पत्थर की मूर्तियों पर लाखों का चढ़ावा चढ़ाया जाता है और नदियों में मल मूत्र बहाया जाता हैं । मल मूत्र का विसर्जन तो फिर भी नदी के जल के लिए उतना हानिकारक नही है । लेकिन हम तो बड़ी -बड़ी फैक्ट्रियों का पूरा जहर ही नदी को पिला दे रहे हैं । और उसी जल से मंदिरों में जाकर अभिषेक करते हैं और सोचते हैं बड़ा पुन्य मिलेगा ।

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हर रोज ना जाने कितने लोग वरुणा के आस पास से नाक दबा कर गुजरते होंगे लेकिन उसपर ध्यान कोई नहींं देता है । वरुणा कोरिडोर के ऊपर करोड़ों रुपए खर्च हो रहे हैं पर कोई परिवर्तन नहींं दिख रहा । जब अपनी संतान ही जान की दुश्मन बन जाएगी तो भला माँ स्वयं को कब तक बचा पाएगी यही हाल वरुणा का भी है । अब देखना ये है कि आखिर कब तक लड़ पाएगी वरुणा अपने अंत से ।

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