समलैंगिक विवाह की मान्यता पर अधिकार नहीं

अगर दो युवतियां आपस में विवाह करना चाहे तो उसमें क्या गलत है ?

उत्तर प्रदेश के भदोही जिले के गोपीगंज थाना क्षेत्र की बात है । जब दो युवतियों ने आपस मेंं विवाह कर साथ रहने की बात अपने परिजनों को बताई तो परिवार में कुहराम मच गया । परिजनों ने रिश्ते से साफ मना कर दिया ।

युवतियों ने जब जान देने की धमकी दी तो मामला थाने पहुंचा । सभी लोग लड़कियों को समझाने लगे । इज्जत और समाज की बाते करने लगे । पर इश्क के आगे किसका जोर चलता है । जब इश्क का नाश सर पर चढ़ता है तो क्या इज्जत और क्या समाज के खोखले कानून सब धूल हो जाते हैं । कुछ ऐसा ही यहाँ भी हुआ । युवतियों ने किसी की बात नहीं मानी अंत मे पुलिस ने उन्हें समझा- बुझा कर घर भेजा और परिजनों को उन्हें परेशान न करने की नशीहत दी ।

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पर अब क्या होगा क्या हमारा आदर्श समाज ऐसे विवाह को अपना पायेगा या इस सभ्य समाज के आदर्शों के लिए उन्हें अपनी इच्छाओं की कुर्बानी देनी होगी ?

यहाँ बात सिर्फ उन युवतियों के भावनाओं की नहींं है यहाँ बात समाज के दबे कुचले सोच की है ।जो हमेशा से परिवर्तन को नापसंद करता आया है । लेकिन ये परिर्वतन आवश्यक है । इससे समाज की और बहुत सी समस्याओं को हल किया जा सकता है । जिसमें से सबसे बड़ी समस्या है जनसंख्या विस्फोट । जो भविष्य की सबसे बड़ी चुनौती है ।

समलैंगिक विवाह के पक्ष में क्योंं नहींं सरकार

सुप्रीम कोर्ट ने आज से 2 साल पहले ही समलैंगिक विवाह अपराध की श्रेणी से हटा दिया था । उसके अनुसार दो वयस्कों के बीच बनाये गए समलैंगिक संबंधों को अपराध नहींं माना जायेगा । इस आदेश में धारा 377 को चुनौती दी गयी है । जो समलैंगिक विवाह को अपराध की सूची में लाता है ।

लेकिन सच ये है कि भारत में समलैगिंक विवाह की मान्यता तो है पर अधिकार नहीं । मतलब हमारे देश में समलैंगिक विवाह के लिए कोई कानून नहीं है । ना ही कानूनी रूप से ऐसा विवाह मान्य है । ये अधिकार तभी मिलेगा जब सरकार संसद में इसके लिए कानून बनायेगी ।

कानून बनाने की मांग बहुत पहले से चल रही है । दिल्ली हाईकोर्ट में इसके लिए बहुत सी याचिकाएंं भी दायर की गयी है । लेकिन सरकार कानून बनाने को तैयार नहींं है ।

सरकार का कहना है कि समलैंगिक जोड़े में पार्टनर के साथ रहने और यौन संबंध बनाने की तुलना भारतीय पारिवारिक इकाई से नहीं की जा सकती है । जिसमें एक जैविक पुरुष को पति और एक जैविक महिला को पत्नी और दोंनो के बीच मिलन से उत्पन्न संतान की पूर्व कल्पना है ।

सरकार ने आगे कहा कि भारत में विवाह से पवित्रता जुडी हुई है । और एक जैविक पुरूष और एक जैविक महिला के बीच संबंध का सदियों पुराने रीति रिवाजों , प्रथाओंं , सांस्कृतिक लोकाचारों और सामाजिक मूल्यों पर निर्भर करता है । केंद्र सरकार ने समलैंगिक विवाह को मौलिक अधिकारों के तहत भी मान्य नहीं माना है ।

वही सुप्रीम कोर्ट के वकील विराग गुप्ता ने कहा कि समलैंगिक विवाह के लिए कानून बनेगा तो विवाह सम्बंधित पूरी कानूनी व्यवस्था में व्यापक और क्रांतिकारी बदलाव होगा । उन्होंने बताया कि भले ही सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाह को मान्यता दे दी है लेकिन मान्यता मिलने और अधिकार मिलने में फर्क होता है । अधिकार मिलने का अर्थ है कि उन परंपरागत कानून में बदलाव किये जायें जिसमें स्त्री और पुरूष के विवाह को कानूनी मान्यता मिली है । साथ ही इससे जुड़े अन्य कानून जैसे गुजरा भत्ता, घरेलू हिंसा और मैरिटल रेप जैसे कानूनों में भी बदलाव किया जाए ।

उन्होंने कहा कि अगर समलैंगिक विवाह मान्य होता है तो और भी बहुत से सवाल खड़े हो जायेगे । जैसे गुजारा भत्ता कौन किसे देगा । ससुराल , मायका औऱ पितृधन , मातृधन क्या होगा । इसपर विचार करना पड़ेगा और भी कई चीजों में परिवर्तन आएगा ।

सवाल ये है कि क्या हम इन परिवर्तनों के भय से आगे ना बड़े । आपना अधिकार छोड़ दे । विश्व मेंं 29 देश ऐसे हैं जहाँ समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता है । वहां भी कानूनी अड़चनें आयी । पर वहां उन्होंने सुलझाया गया । और एक शाश्वत सत्य यह भी है कि कोई भी कानून चिरस्थायी नहीं हो सकता है । उसका टूटना तय है और नए कानून बनना तय है । फिर इन कानूनोंं को बदलने में इतनी देरी क्यों ?

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