मन के हारे हार है ,मन के जीते जीत
अफगानिस्तान में तालिबान जो खूनी संघर्ष कर रहा है । और उस जंग में अफगानी सेना और अशरफ गनी के सरकार की जिस तरह हार हो रही है । उसे देखकर महाभारत की याद आ रही है ।
हालांकि महाभारत जैसे धर्म युद्ध की तुलना इस अमानवीय संघर्ष से करना कतई उचित नहीं है । लेकिन इस युद्ध मेंं जैसी स्थिति सामने आ रही है। उसके लिए सिर्फ यही कहा जा सकता है की मन के हारे हार मन के जीते जीत ।
अफगानिस्तान की सेना संख्या में तालिबानी लड़ाकों से 4 से 5 गुना अधिक है । अफगानि सैनिकों की तादात 350,000 है । जो कि 75 हजार तालिबानी लड़ाकों से बहुत अधिक है । अफगान सेना को अमेरिका से प्रशिक्षण प्राप्त है ।जबकि तालिबान के पास ऐसा किसी भी युद्ध का अनुभव नहीं है । अफगानिस्तान की वायु सेना में 165 लड़ाकू विमान है । तालिबान के पास एक भी विमान नहीं है ।
बिना प्रशिक्षण के संख्या में कम होते हुए भी तालिबान ने अफगनिस्तान के 34 में से लगभग एक दर्जन राज्यों पर कब्जा कर लिया है । जिसमें अफगानिस्तान के दो प्रमुख शहर कंधार और हेरात को अपने कब्जे में ले चुका है । कंधार अफगानिस्तान के दूसरा सबसे बड़ा शहर है । तालिबानी सेना अफगानिस्तान की राजधानी काबुल से मात्र 90 किलो मीटर दूर है ।
अफगानिस्तान के कई कमांडरों ने आत्मसमर्पण कर दिया है । सेना का मनोबल टूट चुका है । गिनी सरकार में उथल पुथल हो रही है । मंत्री और कमांडर बदले जा रहे हैं । अमेरिका ने भी अपने सैनिकों को वापस बुलाने का ऐलान कर दिया है । ।
अफगानिस्तान चारों और से संकट में है । चीन और पाकिस्तान अफगानिस्तान में तालिबानी सरकार को मान्यता देने के पक्ष में है ।
अफगान के नागरिकों की दुर्दशा
युद्ध का सबसे बड़ा सच यही है कि जीते चाहे कोई भी पक्ष किन्तु हारती जनता ही है । राजसत्ता की लालसा में दो गुट लड़ते हैं लेकिन अत्यचार ,जुल्म, सितम बेकसूर जनता के नाम ही आता है । यहां भी यही हो रहा है ।
अमेरिका और ब्रिटेन अफगानिस्तान से अपने अपने नागरिकों को सुरक्षित निकालने के लिये टास्क फोर्स भेज रहे है ।
ऐसे में अफगानी नागरिकों की दुर्दशा हो रही है । तालिबान के लड़ाके वहा की लड़कियों को जबरन गुलाम बना कर उनके साथ दुष्कर्म कर रहे हैं । लोग अपने घर से बाहर नहीं निकल सकते है । लोग घर छोड़ कर भागने को तैयार है।
तालिबान के कब्जे वाले इलाके में दहशत लोगों के जहन में भरी हुई है । वो हर पल अपनी मौत का मंजर देख रहे है । ना उनकी सहायता के लिए वहाँँ सरकार है ना सेना । उन्हें वहाँँ लाचार मरने के लिए छोड़ दिया गया है ।
तालिबान क्या है
आपको बता दे कि तालिबान अफगानिस्तान और पाकिस्तान के मदरसों में पढ़ने वाले छात्रों का एक संगठन है । तालिबान एक पश्तों शब्द है जिसका अर्थ ही है ज्ञानार्थी या छात्र । 1994 में अफगानिस्तान के दक्षिण प्रांत में इस्लामिक कट्टरपंथी राजनीति आंदोलन के रूप में इसकी स्थापना हुई थी । 1996 से 2001 तक अफगानिस्तान में तालिबान शासन के दौरान मुल्ला उमर देश का सर्वोच्च धार्मिक नेता था ।
तालिबान का उदय मुख्य रूप से पाकिस्तान में हुआ था । पश्तून आंदोलन के जरिये तालिबान ने 1996 तक अफगानिस्तान को अपने कब्जे में ले लिया । लेकिन 2001 में अमेरिका द्वारा किये गए। ऑपरेशन एनड्योरिंग फ्रीडम के बाद अफगानिस्तान से तालिबान सरकार समाप्त हो गयी थी और वे संगठन प्रायः लुप्त हो गया था । अमेरिका का ये ऑपरेशन अमेरिका में हुए नाइन एलैवें आतंकी हमले प्रतिक्रिया के रूप में किया गया था । जिसमें अफगानिस्तान के तालिबान सरकार के रहमों कर्म से पल रहे आतंकी संगठन अलकायदा का हाथ था । अमेरिका सेना की वापसी के बाद तालिबान ने पुनः अपने पैर फैलाने शुरू कर दिए । जिसका वर्तमान स्वरूप हमारे सामने है ।