मंकीपॉक्स क्या ले सकता है कोरोना की जगह

भारत के वैज्ञानिकों ने ढूंढ लिया जीवित मंकीपॉक्स वायरस

दुनिया में मंकीपॉक्स के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं ऐसे में क्या ये वायरस कोरोना महामारी की जगह लेने आया है ऐसे सवाल सभी को डरा रहे हैं ।

इसे बीच भारत के वैज्ञानिकों को मंकीपॉक्स से जुड़ी एक नई सफलता हाथ लगी है । पुणे स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरसोलोजी के एक टीम ने मंकीपॉक्स के वायरस की पहचान कर, उसे संक्रमित मरीज के  जांच के लिए आए सैंपल में से बाहर निकाल लिया है  ।

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वायरस की पहचान के लिए टीम का गठन 14 जुलाई को किया गया था । 11 दिन की कड़ी मेहनत के बाद एनआईवी ने वायरस की खोज की आधिकारिक पुष्टि की । यह एक बड़ी सफलता है ।इससे पहले भी एन आई वी की टीम द्वारा करोना वायरस की खोज की गई थी । वायरस की खोज से वायरस से बचाव उसकी जांच किट के तौर करने और उपचार के टीके तैयार करने में मदद मिलेगी ।

एनआईवी की वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. प्रज्ञा यादव ने कहा, यह एक बड़ी कामयाबी है। साल 2020 में जब कोरोना महामारी की शुरुआत हुई थी। उस दौरान हमने सबसे पहले कोरोना वायरस को आइसोलेट किया था। उसके बाद जांच किट बनाई गईं और कोवाक्सिन टीके की खोज भी की थी। इस बार मंकीपॉक्स को आइसोलेट किया है। जल्द ही इसकी जांच किट, उपचार और टीका इत्यादि के बारे में आगे के अध्ययन शुरू होंगे।

इस बीमारी के लक्षण

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार मंकीपॉक्स के लक्षण सिर दर्द , बुखार, सूजन ,कमर दर्द और मांसपेशियों में दर्द त्वचा पर दाने रेशेज  बताए गए हैं । सामान्यतः इसके लक्षण दिखने में 21 दिन तक का वक्त लग सकता है ।


कैसे होता है संक्रमण

इस वायरस का संक्रमण संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने से होता है ।वायरस त्वचा लगे चोट या नाक ,मुंह आदि से शरीर में प्रवेश कर सकता है । बाईसेक्सुअल पुरुषों में यह बीमारी ज्यादा देखने को मिल रही है ।

बचाव

डब्ल्यूएचओ के निर्देशानुसार मंकीपॉक्स से बचाव के लिए जंगली जानवरों से दूर रहें , खासकर उन से बच कर रहे जो बीमार हो या मरे हुए हैं । मीट को पूरी तरह पका कर खाएं पालतू जानवरों को 1 महीने घर में क्वॉरेंटाइन करके रखें।

डब्ल्यूएचओ के अनुसार मंकीपॉक्स से मृत्यु दर 0% से 11% तक है बच्चों में इसका खतरा अधिक है ।

मंकीपॉक्स शब्द कहां से आया

पहली बार यह वायरस 1958 में शोध के लिए रखे गए बंदरों में देखा गया था । जिस कारण इसका नाम मंकीपॉक्स रखा गया । इंसानों में पहला केस 1970 में दर्ज किया गया । यह रोग पश्चिमी अफ्रीका के उष्णकटिबंधीय वर्षा क्षेत्रों में अक्सर देखा जाता है । लेकिन दुनिया के अन्य देशों में इसका विस्तार पहली बार हुआ है । यह वायरस स्मॉल पॉक्स वायरस परिवार से संबंधित है जिससे होने वाली बीमारी के लक्षण चिकनपॉक्स या चेचक से मिलते जुलते होते हैं ।

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