भारत के नस नस में बसा हुआ यह त्यौहार ‘डाला छठ’
‘डाला छठ’ : एक कहावत कही गई है… दुनिया उगती हुए सूर्य को सलाम करती है, कवाली मैं भी कही गई है चढ़ता सूरज धीरे-धीरे ढलता है ढल जाएगा ऐसा माना जाता है कि सूर्य का ढलना कमजोरी का प्रतीक हो यूरोप अरब के देशों में माना जाता होगा पर हम भारतवासी ऐसा नहीं मानते हैं हम डूबते हुए सूर्य को पूछते हैं हमारे लिए पश्चिम में अस्त होता सूर्य भी उतना ही संदेह है जितना कि पूर्व में उदय होता है क्योंकि सूर्य देवता है और दिशा बदलने से हमारा भाव नहीं बदल जाता ।
भारत के नस नस में बसा हुआ यह त्यौहार छठ पूजा कहलाता है और दुनिया भर में मनाए जाने वाले त्योहार का संगीत फीका पड़ जाता है जब यूपी बिहार की माताएं अपने बेटे और बेटियों की लंबी उम्र के लिए एक स्वर में गा उठती है की कांच ही बांस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाय, होई न बलम जी कहरिया, बहंगी घाटे पहुंचाए। इतना माटी से जुड़ा हुआ और भाव से भरा हुआ शायद ही कोई और गीत है इस महापर्व में ऑटो वाले से लेकर चार्ट वाले भैया तक टिकट कटा कर घर को रवाना होते हैं क्योंकि छठ पूजा साल का अकेला ऐसा पर्व है जब मिट्टी और मां दोनों मिलकर एक साथ आवाज देती हैं घर आजा बेटा।
पिपरा के पतवा सरीखे डोले मनवा, जियरा में उठे हिलोर, पूर्वा के झोकवा से आयो रे संदेशवा कि चल देशवा की ओर। पूरे दिन तक पानी की एक बूंद नहीं मिलती ओठ रेगिस्तान की तरह सूख जाते हैं और इसी सूखे हुए ओठ से लोग अपने बेटे,बेटियों के लिए माए ऐसी-ऐसी गीत गाती है.. पहिले-पहिल हम कईनी छठी मईया व्रत तोहार, करिया क्षमा छठी मईया भूल चूक गलती हमार, सबके बलकवा के दिहा छठी मईया ममता दुलार, पिया के सनईया बनईया दीहा सुख सार।….नदी के पास आटे से बेदी बनाया जाता है
बेदी के चारो ओर ईख लगाकर उसके उपर गमछा या साड़ी लगाकर महिलाएं गीत गाती है ठेठ भोजपुरी जैसी भाषा में गीत ही छठ पूजा का मंत्र है निर्जल व्रत कर रही महिलाएं जब यह गीत गाती है तो यह गीत कोई वैदिक मंत्र से कम नहीं लगता वेदी पर लगाई गई ईख छठी मैया है कहीं कोई और प्रतिमा नहीं।