चीन अमेरिका के पद चिन्हों पर चल कर छोटे ऐशियाई देश भी जुटा रहे घातक हथियार
21 सदी की शुरुआत से ही माना जा रहा है कि वैश्विक शक्ति का केंद्र यूरोपीय से खिसक कर एशिया में आ गया है । एशियाई देशों में तेजी से प्रगति हो रही है । यहाँ की अर्थव्यवस्था भी अब पटरी पर आ रही है । लेकिन इसी के साथ साथ यहाँ अब हथियार इकट्ठा करने की होड़ भी बढ़ने लगी है । जो भविष्य के लिए बेहद खतरनाक है ऐसी आशंका राजनायिकों , सेना के वरिष्ठ अधिकारियों और विश्लेषको ने जतायी है ।
जिन देशों के पास रोटी के लिए पैसे नहीं है वो देश लम्बी दूरी के विस्फोटक हथियार खरीद रहे है या बना रहे हैं । चीन और अमेरिका के नक्शेकदम पर चल कर अब एशिया के छोटे देश भी शस्त्रागार भरने लगे हैं । चीन DF 26 हथियारों का प्रोडक्शन कर रहा है । चीन का मुकाबला करने के लिए अमेरिका भी घातक हथियार बनाने में लगा है ।
आखिर क्यों लग रही हथियारों की होड़
छोटे देश जो अभी विकास की राह पर चल रहे है । उनमें हथियार की ऐसी होड़ चिंता का विषय है क्योकि ऐसा करने से उनकी प्रगति पर बहुत ही बुरा असर पड़ेगा । विशेषज्ञों का मानना है कि छोटे देशों में हथियारों की जो ये होड़ लगी है उसकी दो वजह हो सकती है पहली चीन की विस्तारवादी नीति और दूसरी अमेरिका पर निर्भरता ।
चीन एशिया का सबसे शक्तिशाली देश है । और वो अपनी सीमाओं को और अधिक बढ़ाना चाहता है । उसकी ये विस्तारवादी नीति सभी के लिए सिर दर्द बनी हुआ है । जिसके कारण छोटे देशों की अपना वजुद बचने के लिए अमेरिका के आगे झुकना पड़ता है । इसीलिए शायद छोटे देश हथियारों के क्षेत्र में आत्मनिर्भर हो होना चाहते है।
विश्लेषकों ने बताया कि हालत ये है कि दशक के अंत तक एशिया में लम्बी दूरी तक मार करने वाले , सटीक वार करने वाले , तेजी से उड़ान भरने वाले हथियारोंं का भंडार होगा । जो की विश्व और पर्यावरण दोनों के लिए खतरा है ।
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