राष्ट्र की एकता में सह अस्तित्व की भावना को जागृत करता बाबा साहेब का व्यक्तित्व

सामन नागरिकता के प्रबल पक्षधर थे डॉ. अंबेडकर

समाज में रहने वाला प्रत्येक व्यक्ति समान है फिर चाहे वह किसी भी धर्म, जाति, वर्ग या सम्प्रदाय से हो। देश के हर नागरिक का समान अधिकार तथा उसके प्रति समर्पण की भावना है। हम जिस वर्तमान भारत में रहते हैं इसके इस सवरूप के वास्तुकार थे डॉ.भीमराव अंबेडकर जिनका जीवन स्वयं में है जो युगपुरुषों जैसा है।

राष्ट्र की एकता में सह अस्तित्व की भावना को जागृत करता बाबा साहेब का व्यक्तित्व
राष्ट्र की एकता में सह अस्तित्व की भावना को जागृत करता बाबा साहेब का व्यक्तित्व | प्रतिमा_ MGKVP परिसर

डॉ आंबेडकर जिनका संपूर्ण जीवन हमारे लिए ना सिर्फ प्रेरणादायक है बल्कि आत्मसात करने योग्य है। जरा सोचिए बाल्यावस्था से ही समाज में शोषित, सामाजिक भेदभाव से पीड़ित और उनकी हीन भावना से प्रताड़ित एक बालक विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के संविधान का वास्तुकार बनता है। कितना मुश्किल रहा होगा सामाजिक कुरीतियों से लड़कर अपनी अलग पहचान बनाना। तमाम अभावों,अप मानों और अड़चनों की चट्टान को अपने बुलंद हौसलों से तोड़कर एक अलग राष्ट्र की नींव रखने वाले बाबा साहेब का जीवन दो लक्ष्यों पर केंद्रित था। पहला शोषित पीड़ित और अशिक्षित वर्ग को समाज के मुख्यधारा से जोड़कर उनकी सेवा करना तथा दूसरा राष्ट्रहित के लिए सर्वोच्च न्योछावर करना।

स्वयं एम.ए.,पी.एच.डी.,एम.एस.सी.,डी.एससी. बैरिस्टर ऑफ लाॅ आदि उपाधियां अर्जित करने वाले डॉक्टर अंबेडकर ने शिक्षा को हमेशा सर्वोपरि रखा। उनका मानना की एक व्यवस्थित समाज का निर्माण करना है तो शिक्षा अति आवश्यक है। उनका मूल मंत्र था “सीखो” जिसका उन्होंने अपने पूरे जीवन काल में अनुसरण किया। शिक्षा से ही समृद्ध राष्ट्र का निर्माण संभव है और उस पर बाबासाहेब ने पुरजोर समर्थन दिया।

लोकतंत्र में प्रत्येक व्यक्ति की भागीदारी अत्यंत आवश्यक है। डॉक्टर अंबेडकर का राष्ट्र के निर्माण में जो सबसे बड़ा योगदान था वह यह था कि उन्होंने समाज के सबसे निचले और पिछड़े वर्ग को लोकतांत्रिक गतिविधियों के प्रति जागृत किया। सामाजिक भेदभाव से प्रताड़ित व्यक्तियों में स्वाभिमान और सम्मान का अलख जगाया तथा उन्हें अपने हक के लिए आवाज बुलंद करने की शिक्षा दी। बाबासाहेब ने सामाजिक कुरीतियों जैसे जाति भेदभाव, अस्पृश्यता, शिक्षा का एकाधिकार आदि के लिए शोषित एवं पीड़ित वर्ग की तरफ से आवाज उठाई।

25 दिसंबर 1927 में संपन्न हुए महाड सत्याग्रह सम्मेलन में डॉ.अंबेडकर ने कहा था, “अस्पृश्यता निवारण का कार्य हिंदू समाज को बलशाली बनाएगा। इसीलिए मैं कहता हूं कि सामाजिक सुधार का यह कार्य सिर्फ हमारे हित में नहीं बल्कि देश हित में है।हमें पक्षपात,समाज के अमानवीय ढ़ांचे को बदलना होगा ताकि हमारा देश मजबूत हो सके।”

आज वंचित और निचले तबके का व्यक्ति देश का प्रथम व्यक्ति (राष्ट्रपति) बन जाता है। कभी शोषित जीवन जीने को मजबूर वर्ग राज्यपाल,मंत्री,संगीत,कला,सिनेमा ,विश्वविद्यालय का कुलपति तथा सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालय का छात्र है तथा समाज में एक सम्मानित जीवन जी रहा है तो उसका पूरा श्रेया बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर को जाता है। बाबा साहिब ने एक ऐसे राष्ट्र की संकल्पना की थी जिसमें हर व्यक्ति समान हो उस सपने को साकार किया।

राष्ट्र के निर्माण में हर जाति,धर्म,वर्ग,संप्रदाय का समान महत्व है। भारत एक ऐसा देश है जहां पर कई धर्म है तथा सभी धर्म कई जाति,वर्ग में बंटे हुए हैं, लेकिन सभी को एक सूत्र में पिरोने का कार्य किया डॉ.अंबेडकर द्वारा संकल्पित स्वतंत्रता,समता और बंधुत्व की भावना वाला विचार।

Table of Contents

Scroll to Top