खालिस्तान से इन्दिरा गांधी की मौत तक पूरी कहानी
इन्दिरा गांधी की मौत : 13 दिसंबर 1929 लाहौर में कांग्रेस का एक अधिवेशन हुआ जिसकी अध्यक्षता जवाहरलाल नेहरू कर रहे थे, इस अधिवेशन में सबसे पहले मोतीलाल नेहरू ने पूर्ण स्वराज्य का प्रस्ताव रखा था, लेकिन यह प्रस्ताव कुछ गुटों को नागवार गुजरी। जिसका विरोध सबसे पहले मोहम्मद अली जिन्ना फिर दलित समूह का अगुवाई कर रहे हैं डॉक्टर भीमराव अंबेडकर और बाद में मास्टर तारा सिंह का शिरोमणि अकाली दल कर रहा था।
मास्टर तारा सिंह सिखों के लिए स्वतंत्र राज्य की मांग कर रहे थे। 15 अगस्त 1947 भारत आजाद हुआ, इस आजादी ने भारत के दो टुकड़े कर दिए थे। गोरों ने मोहम्मद अली जिन्ना के उस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया था, जिसमें वह मुस्लिमों के लिए स्वतंत्र राज्य की मांग कर रहे थे, लेकिन अकाली दल के सिखों की मांग अभी भी सुलगते आग की तरह वक्त वक्त पर धुंध बिखेर रहा था। [ इन्दिरा गांधी का मौत और खालिस्तान ]
साल 1967 पंजाब में अकाली दल के नेतृत्व ने गठबंधन से सरकार बनाई जिसमें जगजीत सिंह चौहान जो पेशे से डॉक्टर थे उनको पंजाब विधानसभा का अध्यक्ष चुना गया, चूंकि सरकार अकाली दल की थी तो जगजीत सिंह भी उन्हीं सिखों में शामिल थे जो सिखों के लिए स्वतंत्र राज्य की मांग कर रहे थे।
इसी बीच जगजीत सिंह चौहान को अमेरिका के रिपब्लिकन पार्टी के कुछ सदस्यों का न्योता आया और वह अमेरिका रवाना हो गए 13 अक्टूबर 1971 जगजीत सिंह ने अमेरिका में रहकर न्यूयॉर्क टाइम्स अखबार के पहले पन्ने पर सिखों के लिए एक स्वतंत्र राज्य खालिस्थान का जिक्र करते हुए पूरे पन्ने का विज्ञापन छपवा दिया, यह पहली बार था जब खालिस्थान का जिक्र किसी अखबार में किया गया था।
इसी बीच कांग्रेस 1977 में लोकसभा चुनाव हारने के बाद पंजाब में भी विधानसभा चुनाव हार गई, तभी ज्ञानी जैल सिंह जो पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री रह चुके थे, उन्होंने संजय गांधी को सुझाव दिया, कि अगर हमें दोबारा सत्ता में आना है तो सिखों और हिंदुओं के बीच मतभेद पैदा करना होगा जिसके लिए हमें 2 धर्म गुरुओं की आवश्यकता होगी। जैल सिंह ने भिंडरावाले का नाम सुझाया जो उस वक्त अमृतसर के निकट चौक मेहता स्थित दमदमी टकसाल गुरुद्वारा, दर्शन प्रकाश के पूर्व प्रमुख संत करतार सिंह की एक दुर्घटना में मौत के बाद उसके 14 में प्रमुख बने थे ।[ इन्दिरा गांधी का मौत और खालिस्तान ]
जैल सिंह के भिंडरावाले को चुनने के पीछे भिंडरावाले का कट्टर सिख होना था, भिंडरावाला हिंदू धर्म के मूर्ति पूजा का विरोध करता रहता था। संजय गांधी और जैल सिंह भिंडरावाले का इस्तेमाल सिखों को अपनी तरफ करने के लिए करना चाहते थे। कांग्रेस लगातार भिंडरावाले को उसके प्रवचन के लिए प्रोत्साहित करती रहती थी, जिससे अधिक से अधिक मात्रा में सिख उससे जुड़ सकें।
कुछ ही समय में देखते ही देखते भिंडरावाले की लोकप्रियता बढ़ती चली गई और केंद्र में हुए तख्तापलट के बाद इंदिरा गांधी फिर प्रधानमंत्री बन चुकी थी, इधर भिंडरावाला बगावत पर उतर आया था उसमें खालिस्तानी विचार उबाल मार रहे थे वह अमृतसर स्थित स्वर्ण मंदिर की छत पर अपने भाषणों से युवाओं में खालिस्तानी सोच पैदा करने लगा था।
दिन-रात भिंडरावाले के समर्थकों की संख्या बढ़ती ही जा रही थी, और युवा सिख, “वी वांट खालिस्तान” के नारे लगाने लगे थे। इसी को देखते हुए खुफिया विभाग रॉ और आर्मी ने स्वर्ण मंदिर के छत पर जहां से भिंडरावाला देर रात तक प्रवचन करता था, वहां से उसे गिरफ्तार करने के लिए एक ऑपरेशन चलाने की योजना बनाई थी, इंदिरा गांधी की मंजूरी के बाद ऑपरेशन ब्लू स्टार को अंजाम दिया गया, जिसमें भिंडरावाले की मौत हो गई। [ इन्दिरा गांधी का मौत और खालिस्तान ]
7 जून 1984 सुबह बीबीसी और ऑल इंडिया रेडियो ने भिंडरावाले की मौत की खबर प्रसारित की, इसके साथ ही चारों तरफ सिख युवाओं में ऑपरेशन ब्लू स्टार के परिणाम को लेकर गुस्सा भरा था। पंजाब के गुरुद्वारों के बाहर इधर-उधर पोस्टर लहरा रहे थे सभी युवा कांग्रेस के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे।
ऑफिसर जीबीएस सिद्धू के अनुसार स्वर्ण मंदिर परिसर के लंगर द्वार पर लहरा रहे एक पोस्टर पर लिखा था… सिंह साहिब भाई अमरीक सिंह अते थारा सिंह नू तसीहे देके मारया गया है । हुन इस ब्राह्मणी नू मारण दा हर सिख दा फर्ज बनदा है। यहां ब्राह्मणी शब्द का इस्तेमाल इंदिरा गांधी के लिए किया गया था सिख युवाओं के भीतर इंदिरा गांधी को लेकर खूब गुस्सा भरा था। [ इन्दिरा गांधी का मौत और खालिस्तान ]
यही वजह थी कि इन्दिरा गांधी के सुरक्षा में लगे सिख जवानों की ड्यूटी हटा दी गई थी । लेकिन अचानक 21 से 25 अक्तूबर के बिच दो युवा सिख जवानों की ड्यूटी प्रधानमंत्री कार्यालय के करीब सफदरगंज रोड से 1 अकबर रोड के क्रॉसिंग पर लगा दि गई थी, इन्दिरा गांधी की हत्या करवाने का ये एकदम आसान और कारगर तरीका था।
31 अक्तूबर 1984 घड़ी में सुबह के 9 बजे थे इंदिरा गांधी अपने एक सलाहकार और सुरक्षा जत्थे के साथ सफदरगंज रोड से 1 अकबर रोड के तरफ बड़ रही थीं जैसे ही इंदिरा गांधी का अगला कदम एक अकबर रोड और सफदरगंज रोड के क्रॉसिंग पर पड़ा अचानक सतवंत सिंह और बेन्ट सिंह जो दो युवा सीख जवान थे उन्होंने इंदिरा गांधी पर फायरिंग शुरू कर दी देखते ही देखते 9 एमएम की 30 गोलियां इंदिरा गांधी के सीने में उतर चुकी थी और देश की पहली महिला प्रधानमंत्री दुनिया छोड़ चुकी थीं । [ इन्दिरा गांधी का मौत और खालिस्तान ]