आंतरिक मुद्दे पर विदेशी मंच का सहारा
प्रधानमंत्री मोदी के द्वारा किसान बिल वापस लिए जाने की घोषणा के बाद किसान संगठन खुश तो हैं लेकिन अभी आंदोलन खत्म करने का कोई इरादा नहीं है। आज केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में तीनों कृषि कानूनों की वापसी के बिल को मंजूरी दे दी गई है।शीतकालीन सत्र में इस बिल को संसद में पेश किया जाएगा।

कृषि बिल की वापसी के बाद अब एमएसपी पर गारंटी के साथ-साथ छह मांगो पर किसान संगठन अभी भी अड़े हुए हैं। एमएसपी पर स्थाई गारंटी के लिए संयुक्त किसान मोर्चा की रणनीति एक बार फिर से सरकार के लिए सिर दर्द बनी हुई है। लखनऊ महापंचायत के बाद संयुक्त किसान मोर्चा ने 26 नवंबर संविधान दिवस के मौके पर सरकार को फिर से घेरने की तैयारी में है। संविधान दिवस के दिन संयुक्त किसान मोर्चा के किसान अंतरराष्ट्रीय किसान संगठनों के साथ मिलकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शन करेंगे।
संयुक्त किसान मोर्चा ने एक प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से बताया 26 नवंबर को किसान आंदोलन के एक साल पूरे होंगे इस मौके पर विदेशों में इंग्लैंड,फ्रांस,ऑस्ट्रिया,ऑस्ट्रेलिया ,कनाडा,नीदरलैंड्स और अमेरिका के कई जगहों पर आंदोलन होगा। लंदन में भारतीय उच्चायोग के बाहर 26 नवंबर को 2 घंटे 12:00 से 2:00 तक विरोध प्रदर्शन किया जाएगा। इसी तरह कई देशों में भारत के खिलाफ बड़े स्तर पर प्रदर्शन की तैयारी है।
अब प्रश्न यह उठता है कि आंतरिक मुद्दों के लिए विदेशी मंच की क्या आवश्यकता है? इस तरह से देश के बाहर विदेशों में सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करने से भारत की छवि पर क्या असर पड़ेगा? भारत सरकार के खिलाफ विदेशों में प्रदर्शन करने से क्या वास्तव में किसानों की समस्याओं का हल निकलेगा? इस प्रकार से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विरोध प्रदर्शन या आंदोलन करने से हिंदुस्तान की छवि पर गहरा असर पड़ेगा। अपनी मांग पूरी करने के लिए सरकार पर दबाव देना सही है लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शन उचित नहीं है।
एमएसपी पर स्थाई गारंटी पर किसान सरकार को पूरी तरह से घेराव करने के मूड में है। 29 नवंबर को संयुक्त किसान मोर्चा ट्रैक्टर मार्च करेंगे।इसी दिन संसद का शीतकालीन सत्र भी शुरू हो रहा है और ट्रैक्टर रैली द्वारा किसान दिल्ली में संसद कि ओर कूच करेंगे इससे एक बार फिर से टकराव की स्थिति पैदा होने की आशंका है।
किसान नेता राकेश टिकैट की अगुवाई में 27 नवंबर को गाजीपुर और टिकरी बॉर्डर पर एमएसपी के लिए सरकार पर दबाव डालने की रणनीति को जामा पहनाया जाएगा। किसान नेता टिकैट के अनुसार गाजीपुर बॉर्डर से 30 ट्रेक्टर दिल्ली जाएंगे जिसमें 7 संसद की ओर मार्च करेंगे। उधर शीतकालीन सत्र के दौरान संसद के आसपास धारा 144 लगा दी जाती है,प्रशासन पूरी तरह से मुस्तैद रहता है और इस तरह ट्रैक्टर मार्च की घोषणा अभी से सरकार और दिल्ली प्रशासन की नींद हराम की हुई है।
आपको बता दें कि इसी साल 26 जनवरी को किसानों द्वारा संसद तक ट्रैक्टर मार्च निकाला गया था और इस दौरान अराजकता भी की गई। प्रशासन और किसानों के बीच टकराहट से देश की राजनीति में भी गर्माहट आई थी। पिछली बार राहुल गांधी द्वारा ट्रैक्टर मार्च में हिस्सेदारी एवं समर्थन करने पर बवाल भी मचा था और दिल्ली पुलिस द्वारा किस भी दर्ज किए गए थे इस बार संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान दिल्ली में संसद तक किसानों की इस ट्रैक्टर रैली का आह्वान चिंताजनक है।
आपको बता दें कि किसान संगठनों ने सरकार से एमएसपी पर गारंटी,बिजली संशोधन बिल 2021 की वापसी,पराली जलाने वाले किसानों पर किए गए कि केस की वापसी ,आंदोलनकारी किसानों पर केस की वापसी,केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा की बर्खास्तगी और गिरफ्तारी तथा 700 मृत किसानों के परिवारों को मुआवजा एवं उनके लिए शहीद स्मारक बनाने की मांग की है।
अब देखना यह है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किसानों के प्रदर्शन को रोकने के लिए सरकार इनकी मांग को पूरा करती है या भारत एक बार फिर से किसानों के आंदोलन के कारण विदेशी मीडिया के लिए ब्रेकिंग न्यूज़ बनेगा।
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