कांग्रेस अध्यक्ष का टला चुनाव, कांग्रेस का भविष्य
कोरोना के कारण 23 जून को होने वाला कांग्रेस के पार्टी अध्यक्ष का चुनाव को टाल दिया गया है ।
CWC ने कोरोना के दुसरी लहार को देखते हुए ये फैसला लिया है । राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत तथा कांग्रेस के अन्य शीर्ष नेतागण गुलाम नबी आजाद, आंनद शर्मा का भी मानना है कि ऐसी भयावह स्थिति में फिलहाल चुनाव करना ठीक नहीं है । इस वक्त राष्ट्र हित पार्टी हित से ज्यादा जरूरी है । 2019 लोकसभा चुनाव के बाद राहुल गांधी के इस्तिफ़े के बाद सोनिया गांधी को कार्यकारी अध्यक्ष चुना गया था ।
तभी से पार्टी में स्थायी अध्यक्ष की मांग उठ रही है ।
अध्यक्ष चुनाव पर टिका भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का भविष्य
कांग्रेस का भविष्य, कांग्रेस आज़ादी के लिए बनाया गया संगठन था जिनसे निसन्देह आज़ादी में अहम भूमिका निभाई थी । भारतीय राजनीति की सबसे पुरानी पार्टी आज आपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है । जिस पार्टी से टूट कर भारत की सभी पार्टियाँ बनी है वो पार्टी आज खुद ही टूट रही है ।पार्टी की अन्तरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी का कहना है कि ये पार्टी के इतिहास का सबसे कड़वा अध्याय है । देश के पांच राज्यों में चुनाव हुए जिसमें हमें मुँह की खानी पड़ी ।असम और केरल में हमें कुछ नहीं मिला और नाहीं प ०बंगाल में ही हाथ कुछ आया । हमें सच का सामना करना होगा सही तथ्यों को नजरअंदाज करके सही नतीजा नहीं पाया जा सकता है ।
पिछले साल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नवी आजाद ने पार्टी के काम काज के तरीकों पर प्रश्न चिन्ह लगाते हुए कहा था कि फाइव स्टार कल्चर से चुनाव नहीं जीत जा सकता है । पिछले 72 सालों में कांग्रेस सबसे निचले पायदान पर है ।
वहीं पार्टी के 23 नेताओं ने जिसमें कपिल सिब्बल , गुलाम नवी आजाद भी शामिल थे , चिट्ठी लिखकर सोनिया गांधी से पार्टी के कामकाज की नीति में ऊपर से नीचे तक बदलाव करने की मांग की थी । नेताओं की मांग ऐसे स्थायी लीडर की थी , जो फील्ड में एक्टिव रहे और जिसका प्रभाव भी दिखे ।
ऐसे में कांग्रेस पार्टी का भविष्य अब आने वाले अध्यक्ष पर ही टिका है । यह देखना दिलचस्प होगा की अब कांग्रेस अपने वंशवाद को बचाती है या अपने अस्तित्व को ।
कांग्रेस का अगला अध्यक्ष गान्धी होगा या कांग्रेसी
कांग्रेस के अध्यक्ष चुनाव में लोकतंत्र के स्थान पर वंशवाद को महत्व दिया जाता है ये किसी से छिपा नहीं है । आज़ादी के बाद से ही कांग्रेस पर नेहरू के खून की हुकूमत रही है ।जिस पार्टी को देश के सभी वर्गों का समर्थन मिला क्योंकि उसमें सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व करने की क्षमता थी । पर वंशवाद के विकास की भावना ने पार्टी से उसका जन समर्थन छीन लिया । वापस से जनमत प्राप्त करने के लिए पार्टी को एक अच्छे नेतृत्व की जरूरत है । ऐसे नेतृत्व का फिलहाल गाँधी वंश में अभाव है । इसलिए देखना मज़ेदार होगा कि कांग्रेस का अगला चुनाव लोकतंत्र के आधार पर होगा या खून के आधार पर ? किसी कांग्रेसी को अध्यक्ष की कुर्सी मिलेंगी या फिर कमान नेहरू का परिवार ही संभालेगा ?