ऑटिज्म एक बीमारी
बहुत सी बीमारियां ऐसी होती है जो गर्भ में होती हैं और मृत्यु तक बनी रहती है । ऐसी ही एक बीमारी है ऑटिज्म । जिसे हिंदी में स्वलीनता के नाम से जानते हैं ।
यह एक न्यूरोलॉजिकल और विकास संबंधी रोग है । जो मुख्यतः पांच वर्ष तक के बच्चों में दिखाई देता है और उनके जीवन के अंत तक बना रहता है ।

ऑटिज्म को मानसिक विकलांगता के रूप में समझा जा सकता है । जो कभी – कभी समाप्त भी नहींं होती है । यह इंसान के काम करने , सीखने और उसकी बातचीत को प्रभावित करती है । लोगों को यह ज्यादा फैलाने वाली आम बीमारी की तरह नहीं लगती है लेकिन आपको बता दें कि भारत में एक सौ दस में से एक बच्चा ऑटिज्म का शिकार होता है ।
देखा गया है कि ऑटिज्म महिलाओं की तुलना में पुरुषों को अधिक प्रभावित करता है यह बीमारी जिन लोगों को होती है वह ऑटिस्टिक कहलाते हैं ।
ऐसे लोग दुनिया को दूसरी नजर से देखते , सुनते और महसूस करते हैं। इसे ठीक नहीं किया जा सकता है। ऑटिज्म के साथ बच्चे को काम करने में परेशानी होती है । अन्य लोग क्या महसूस करते हैं ,वह नहीं समझ पाते उन्हें अपने शब्दों को इशारों , चेहरों की अभिव्यक्ति और स्पर्श के माध्यम से व्यक्त करने में दिक्कत होती है ।ऑटिज्म में रोगी मानसिक रूप से विकलांग हो सकता है बोलने एवं सुनने में भी समस्या होती है।
कारण वैज्ञानिक भी नहीं जान पाए
वैज्ञानिकों द्वारा किए गए शोध में ऑटिज्म का मुख्य कारण अभी तक पता नहीं चल पाया है फिर भी यह कई कारणों से हो सकता है मसलन गर्भावस्था के समय मां को कोई बीमारी होना, बच्चे का मानसिक रूप से बीमार होना या मस्तिष्क का पूर्ण रूप से विकास ना होना इत्यादि ।ऑटिज्म किसी व्यक्ति की परिवेश या सामाजिक परिस्थिति के कारण नहीं होता है ।
जानिए इसके लक्षण क्या है
ऐसे बच्चे सामान्य बच्चों की तरह नहीं होते हैं इनके लक्षण वाले बच्चे लोगों को किसी सामान वस्तु की तरह देखते हैं यह ज्यादा मुस्कुराते नहीं है । अधिकतर खुद में रहना पसंद करते हैं और आमतौर मित्र बनाने में भी रुचि नहीं दिखाते हैं ।
उन्हें समूह में खेलना पसंद नहीं होता और जल्दी किसी से बात नहीं करती है। केवल अपने बातों को दोहराते हैं नाही किसी के सवाल का जवाब दे पाते है । बात करते समय में अंगुली और हाथ से कोई संकेत नहीं करते हैं और अक्सर बहुत बेचैन रहते हैं ।
ठीक करने के उपाय
वैसे तो ऑटिज्म के लिए कोई पर्याप्त इलाज नहीं है परंतु बीमारी होने पर दो चिकित्सकीय पद्धतियों का उपयोग इसके लिए किया जाता है ।
इसमें पहले बिहेवियर और कम्युनिकेशन थैरपी (व्यवहार एवं संप्रेषण चिकित्सा) में बच्चे को लोगों से कैसे बात और व्यवहार करना है यह सिखाया जाता है उसे समाज में अपने आप को किस तरह रखना है इसकी सीख दी जाती है।
वहीं दूसरी एजुकेशनल थेरेपी (शैक्षिक चिकित्सा) इसमें ऑटिज्म प्रभावित बच्चों को खासतौर पर शिक्षा दी जाती है इसमें वैज्ञानिकों की एक टीम होती है जो बच्चों को विशेष परीक्षण देती है ताकि यह बच्चे भी समाज में रहने की योग्य बन पाए ।
आज के मौजूदा दौर में माता पिता अपने बच्चों को लेकर काफी परेशान रहते है । उनकी भविष्य की चिंता के कारण वर्तमान में उनके साथ अधिक शक्ति से पेश आते हैं। बच्चों पर पहले की अपेक्षा मानसिक दबाव भी अधिक है । ऐसे में अक्सर देखा जा रहा है कि बच्चे किसी ना किसी मनोरोग का शिकार हो जाते हैं । ऑटिज्म भी एक मनोरोग है । जिसका इलाज माता पिता प्यार है ।
आज माता पिता बच्चों को वक्त नही दे पाते हैं । जिसके कारण बच्चे अकेला महसूस करने लगते हैं । और यही अकेलापन उनकी आदत बन जाता है । फिर वो समाज के बीच आना ही नहीं चाहते । माता पिता को ये समझना होगा कि मनोरोग का इलाज केवल प्रेम है । उन्हें अपने बच्चों को डॉक्टर के पास भेजने से पहले खुद उनके साथ समय बीताना चाहिए ।
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