स्वास्थ्य ने दी शिक्षा को मात

महामारी से ग्रस्त हुई : भारतीय शिक्षा व्यवस्था

भारत में कोरोना ने ना सिर्फ लोगों को अपना शिकार बनाया है बल्कि पूरे प्रशासनिक ढ़ाचे को अपने चपेट में ले लिया है । देश को ना सिर्फ शारीरिक बल्कि मानसिक कोरोना भी हो चुका है । देश के प्रधानमंत्री जो कभी आपदा में अवसर की बात करते थे वो इस महामारी में छात्रों को बिना परीक्षा प्रोमोट कर रहे हैं । आज छात्रों के सम्मुख शिक्षा या स्वास्थ्य में से किसी एक को चुनने का प्रश्न खड़ा है । पिछले दो सालों से भारतीय शिक्षा व्यवस्था पूरी तरह धारा शाही हो चुकी है । बीते दो साल से बच्चे घरों में ही ऑनलाइन पड़ रहे हैं उन्हें बिना वार्षिक परीक्षा के अगली कक्षा में भेज दिया जा रहा है । अब देश के लगभग सभी राज्य 10 वी और 12 वी की बोर्ड परीक्षा रद्द कर रहे हैं । जो कि बच्चों की सुरक्षा के लिए आवश्यक है लेकिन भविष्य के लिए खतरा है ।

UP के 55 लाख बच्चे प्रोमोट

सीबीएसई के बाद अब उत्तर प्रदेश बोर्ड की बारहवीं कक्षा की परीक्षा भी रद्द कर दी गई है। विद्यार्थियों को आंतरिक मूल्यांकन के जरिए पास किया जाएगा। गौरतलब है कि यूपी बोर्ड पहले ही दसवीं कक्षा की परीक्षा को रद्द कर चुका है। मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सीबीएसई की बारहवीं कक्षा की परीक्षा को रद्द करने की घोषणा की थी। इसके बाद से सभी राज्यों के बोर्ड पर बारहवीं कक्षा की परीक्षा को रद्द करने का दबाव बढ़ गया था। गुरुवार को सूबे की सरकार ने बारहवीं कक्षा की परीक्षा को रद्द करने की घोषणा की।

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सूबे के उपमुख्यमंत्री डॉ दिनेश शर्मा ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ से बातचीत के बाद बारहवीं कक्षा की परीक्षा को निरस्त करने की घोषणा की है।

क्या है देश में गरीब बच्चों के शिक्षा का भविष्य

सुबह उठ के नहा कर स्कूल बैग टांगे बच्चों को स्कूल जाते देखे मानो जवाना गुजर गया । अब बच्चे उठते ही ऑनलाइन कक्षाओं में बैठ जाते हैं । बहुत भाग्यशाली हैं वो बच्चे जिनके पास ऑनलाइन क्लास करने की सुविधा है । हमारे देश में ही लाखों ऐसे बच्चे हैं जिनके पास पढ़ाई के लिए कॉपी पेन तक नहीं वो स्मार्ट फ़ोन पर ऑनलाइन क्लास कैसे लेगे ।

और जिन सरकारी स्कूलों में कक्षाएं नियमित तौर पर नहींं चलती थी । उन विद्यालयों से स्वेच्छा से ऑनलाइन कक्षाओं के संचालन की उम्मीद करना तो बहुत अधिक है । ऐसे में कोई इस बात का जायजा लेने तक नहींं जा रहा कि स्कूलों में कक्षाएं चल भी रही है या नहीं । ना प्रशासन इस बात पर विचार कर रहा है कि जिन बच्चों के पास स्मार्ट फ़ोन नहींं उनके शिक्षा के लिए क्या विकल्प किये जायें । सरकारी तंत्र का पूरा ध्यान तो इस बात पर है कि कोरोना से कैसे बचें । वर्तमान की समस्याओं में उलझी हुई सरकार भविष्य के खतरों से अनभिज्ञ है ।

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भारत मेंं शिक्षा की आज जो स्थिति है उससे लग रहा है कि आने वाले सालों में जब कोरोना की लहर समाप्त हो जायेगी तब असाक्षरता कहर बन के टूटेगी । जिन बच्चों को अपना नाम तक लिखने नहींं आता उनके पास 12 की डिग्री होगी । और जो बच्चे पढ़ना चाहते है स्मार्टफोन के अभाव में वे शिक्षा से वंचित रह जायेंगे । अमीरों के बच्चों को ही शिक्षा मिल सकेंगी ।

जिस अमीरी और गरीबी की खाई को सिर्फ़ शिक्षा ही भर सकती थी वो खाई आज शिक्षा के कारण ही और गहरी होती जा रही है । जो देश के भविष्य के लिए खतरा है । जिस उम्र में बच्चे अपना लक्ष्य को निर्धारित करते हैं जिसमेंं उनके शिक्षक की अहम भूमिका होती है । उस उम्र में बच्चे अपने स्कूल से दूर हो चुके हैं । दुनिया जानने की उम्र में घर में बैठे हैं ना पढाई की चिंता ना आने वाले संकटोंं का पता । क्या होगा इनका भविष्य ? बहुत से सवाल है जिनका सरकार और देश के उच्च अधिकारियों से पूछा जाना जरूरी है ।

देश के 10 वी और12 वी के लगभग सभी छात्रों को बिना परीक्षा प्रोमोट करना का कहाँँ तक उचित है । माना ये अगर ये विपरीत समय है लेकिन आखिर कब तक हम और हमारा तंत्र इसके सामने झुकेगे । जिस आत्मविश्वास के साथ सरकार ने चुनाव कराए क्या उसी आत्म विश्वास सरकार परीक्षाएं नहींं करा सकती है । सबका साथ और सबका विकास वाली सरकार आज ग़रीब बच्चों के शिक्षा के संकट पर क्यों मौन है ?

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