भारत की पहली महिला स्नातक ; कादम्बिनी गांगुली
भारत में प्राचीन काल से ही महिलाओं की शिक्षा बहुत ही विवादास्पद विषय रहा है । एक महिला होने के नाते खुद के पैरों पर खड़ा होने के लिए हमेंं काफी संघर्ष करना पड़ता है । दुनिया से पहले आने घर वालों से लड़ना पड़ता है । हमे शिक्षा मिलती भी है तो पाकशास्त्र , सिलाई ,बुनाई इन सब चीजों में ।
वर्तमान समय तो काफी बदल गया है अगर गाँँवोंं और पिछड़े इलाकों को छोड़ दे तो लगभग सभी जगहों पर महिलाएं अपने वजूद को बनाने मेंं कामयाब नजर आने लगी है । पहले की अपेक्षा परिवार वाले भी अधिक सहयोगी हो गए हैं ।
अब शिक्षा में स्त्री पुरूष का भेद काफी हद तक मिट चुका है । ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है जहाँ महिलाएं ना हो । पश्चिमी सभ्यता का अनुसरण कर के ही सही पर कम से कम हमारा पूर्वाग्रह जो समाप्त हुआ । आज महिलाएं पुरुषों से कदम से कदम मिला कर चल रही है । लेकिन हम ये जो वर्तमान समाज देख रहे है । ये जो स्वतंत्रता महसूस कर रहे हैं । उसके लिए बहुत सी महिलाओं में अपना पूरा जीवन दिया है । अपने संघषों से ,अपने मेहनत से हमारे लिए रास्ता बनाया है जिसपर चल कर हम आज अपनी पहचान बना रहे हैं ।
आज ऐसी ही एक नारी शक्ति की गरिमा को स्थापित करने वाली परम् विदुषी महिला की जयंती है । जी हाँ हम बात कर रहे हैं कादम्बिनी गांगुली की । आज हम जिस भारतीय समाज को देख रहे हैं वो भारतीय समाज इतिहास के भारत से बहुत भिन्न है । लेकिन दोनों में एक समानता है जो कल भी थी आज भी है और हमेशा रहेगी ।
वो है भारतीयों की संघर्षशीलता । ऐसी ही एक मुश्किलों से लड़कर जीत हासिल करने वाली , नारी समाज की प्रेरणा स्रोत है , आज से 160 साल पहले जन्मी कादम्बिनी गांगुली है ।
कादम्बिनी का जन्म18 जुलाई 1861 में गुलाम भारत के पश्चिमी बंगाल के चांदसी नामक गाँव में हुआ था जो अब बांग्लादेश के बारीसाल जिले में है । कादम्बिनी छोटे से गाँव से निकलकर यूके तक पहुँची । उनका ये सफर निःसन्देह बहुत ही मुश्किलों भरा रहा होगा ।
पहले उन्होंने ढाका फिर कोलकता से अंग्रेजी की शिक्षा ली । उन्हें आगे चिकित्सक बनने की इच्छा थी लेकिन विडम्बना ये थी कि दुनिया को आयुर्वेद , चरक सहित और भी कई प्रकार की चिकित्सा पद्दति देने वाले भारत में इस समय चिकित्सा के क्षेत्र में महिलाओं का प्रवेश वर्जित था । ऐसे परिवेश में 1884 में कादम्बिनी ने कोलकत्ता के मेडिकल कॉलेज में दाखिला लिया । आज चिकित्सा के क्षेत्र में भारतीय महिला चिकित्सकों को जो गौरव प्राप्त है उसका श्री गणेश इन्हीं के संघर्षों से हो सका है । ये भारत की पहली मेडिकल की छात्रा थी ।
1892 में ये चिकित्सा की आगे की पढ़ाई के लिए यूके (यूनाइटेड किंगडम) चली गयी । वहाँ इन्होंने मेडिसिन के क्षेत्र में ज्ञान अर्जित किया । एडिनबर्ग और डबलिन की डिग्री के साथ भारत लौटी । लौटने के बाद भारत मे इन्होंने अपना अभ्यास शुरु किया । साथ ही ये सामाजिक आंदोलनो से भी जुड़ी रही । बंकिमचंद्र चैटर्जी से ये बहुत प्रवाभित थी । उन्हीं के व्यक्तित्व से इन्होंने देशभक्ति की शिक्षा ली ।
कोयला और खनिजों के फैक्टरी में काम करने वाली महिलाओं की स्थिति सुधारने के लिए मैदान में उतर कर लड़ाई लडी। 1915 में इन्होंने कोलकत्ता मेडिकल कॉलेज द्वारा छात्राओं को प्रवेश न देने पर कोलकत्ता मेडिकल कॉलेज का खुल कर विरोध किया । ये भारत की पहली महिला स्नातक होने के साथ ही कांग्रेस के अधिवेशन में भाषण देने वाली पहली महिला भी है । कादम्बिनी गांगुली पहली दक्षिण एशियाई महिला है जिन्होंने यूरोपीय मेडिसिन में प्रशिक्षण लिया ।
कादम्बिनी उस समय के सभी छात्राओं की रोल मॉडल थी । इन्होंने भारतीय महिलाओं को अपने हक के लिए खड़ा होना सिखाया है । इनके व्यक्तित्व की बहुत सी बातें हमारे लिए प्रेरणा लेने योग्य है । जिस भारत मेंं इनका जन्म हुआ था उस भारत में स्नातक तो बहुत दूर की बात है महिलाओं को प्राथमिक शिक्षा भी नहींं मिलती थी । ऐसे समय में समाज के रुढियों को अपने ज़िद्द से तोड़ते हुए । पढ़ाई के लिए विदेश तक चले जाना आसान कार्य नहीं है । इन्होंने दिखा दिया कि माहौल जैसा भी हो अगर कुछ पाने की जिद्द हमारे अंदर है तो फिर कोई भी बेड़ी हमारे उड़ान को नहीं रोक सकती ।