1.शव जलाने को लकड़ियां भी कम,वाह रे कोरोना तेरा करम! कोरोना से दम तोड़ रहे लोग ,लकड़ियां भी नसीब नहीं
कोरोना से दम तोड़ रहे लोग अब शव जलाने को लकड़ियां भी कम पड़ रही है । लोग हिन्दू धर्म की परंपरा को तोड़ने को मजबूर हो रहे है । मोक्ष देने वाली पवित्र अग्नि की जगह अपने परिजनों को मिट्टी में दफ़नाने को विवश है । हाल ही में लखनऊ और कानपुर में देखने को मिला है कि लोग गंगा किनारे लाशों को दफन कर रहे हैं । क्योंकि घाटोंं पर लकड़ी कम है । कानपुर – उन्नाव में हजारों लाशें गंगा के किनारे दफनाई जा चुकी हैंं ऐसा दैनिक भास्कर का दावा है ।
2.मात्र 3 फीट गड्डे में दफन हो रही लाशें,
गंगा किनारे लाशों के दफ़नाने का सिलसिला शुरू हो चुका है । लाशों को मात्र 3 फीट के गड्डोंं में दफनाया जा रहा है ।जो चिंता का विषय है क्योंकि नदी का जल स्तर बढ़ने पर ये लाशें ऊपर आ के तैरने लगेगी । इससे संक्रमण का खतरा भी बढ़ सकता है क्योंकि आस -पास के गाँवों में गंगा का पानी ही पीने के लिए सप्लाई होता है । गड्डों में नमक डाल कर लाशों को दफन किया जा रहा है ।
3.दाह संस्कार की तूलना में दफनाना सस्ता पड़ रहा है ।
कोरोना के समय में न केवल हवा बिक रही है बल्कि अब आग भी बिकने लगी है । कमाई के ओर सभी साधन टप्प हो चुके हैं । ऐसे में लोगोंं के पास कोई और रास्ता नहीं बचा है । शमशान में लकड़ी इतनी महँगी हो गयी है कि लोगों को अपने परिजनों को मिट्टी में दफनाना पड़ रहा है । सरकार भी इस पर आँख मूंदे थे हालांकि 7 मई को प्रशासन ने स्पष्ट निर्देश दिये कि कोरोना संक्रमितों का अंतिम संस्कार15 वे वित्त बजट में होगा । कोरोना से मारने वाले एक व्यक्ति पर अधिकतम 5000 हजार रूपये ख़र्चे जाने का प्रावधान किया गया है ।