26 जुलाई ,कारगिल विजय की 23वी वर्षगांठ
कारगिल : आज देश एक ओर पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति के साथ लोकतंत्र के जीत का जश्न मना रहा है । तो दूसरी ओर भ्रष्टाचार और घोटाले की कहानियां मीडिया की सुर्खियां बनी हुई है ।
कोई आजादी के 75 वर्ष पूरे होने पर राष्ट्रवाद की भावना से भरकर अमृत महोत्सव में डूब है तो कोई देश को आतंकवाद , जातिवाद और नफरत की आग में जला रहा है ।
सबसे बड़ी बात ये है कि इन सब से साथ देश निरन्तर आगे बढ़ रहा है नए कीर्तिमान रच रहा है और इस नए भारत को बनाने में योगदान देने वाले नायकों को याद कर रहा है ।
ऐसे ही देश के लिए जान निछावर करने वाले नायकों की ही एक कहानी है महान कारगिल युद्ध । जिमसें देश का शौर्य , समर्पण, साहस ,धैर्य सब देखने को मिला ।
मई 1999 से जुलाई 1999 तक चलने वाला यह युद्ध राष्ट्रीय पराक्रम के पराकाष्ठा का उदाहरण है । जब दुश्मन 4500 से 5000 मीटर ऊपर हो ऐसे में उसे अपने धरती से खदेड़ना असंभव सा लगता है पर भारतीय जवानों के वीरता के आगे इस असंभव को भी संभव होना पड़ा ।
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लगभग 50 दिन तक चले इस जंग में भारत ने अपने 527 जवानों की शहादत दी और पाकिस्तान के पास 11 वर्षों तक यह स्वीकार करने का साहस तक नहीं हुआ कि युद्ध में उसके सैनिक मारे गए हैं ।
2010 में पाकिस्तान ने औपचारिक तौर पर यह घोषणा की कि कारगिल युद्ध में उसके 450 से अधिक सैनिक शहीद हुए हैं जबकि पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने अपने एक इंटरव्यू इस आंकड़े को चार हजार के लगभग बताया था ।
युद्ध की शुरुआत में पाकिस्तान ये मानने को तैयार ही नहीं था कि युद्ध पाकिस्तानी सेना द्वारा लड़ा जा रहा है । पाकिस्तान इसे एक आतंकवादी हमला बताता रहा । उसने अपने सैनिकों को मुजाहिद्दीन बताकर उनके शव लेने तक से इनकार कर दिया था ।
कारगिल भारत पाकिस्तान के बीच लड़ा जाने वाला चौथा युद्ध था । तीन युद्धों के सीधी टक्कर में हुए , करारी हार के बाद पाकिस्तान में पीछे से वार करने का रास्ता अपनाया ।
पहले सर्दियों के मौसम में बर्फ गिरने के बाद भारतीय और पाकिस्तानी आर्मी कश्मीर की ऊंची पहाड़ियों से अपने पोस्ट को नीचे ले आती थी । इसी का फायदा उठाकर पाकिस्तानी सेना ने आतंकियों को आगे कर पीछे से श्रीनगर को लेह से जोड़ने वाले हाईवे NH1D के आसपास की ऊंची पहाड़ियों पर कब्जा कर लिया । ताकि वह भारतीय ठिकानों को आसानी से देख सके ।
यह मार्ग भारत के लिए सामरिक दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण था इसी मार्ग द्वारा सियाचिन के सैनिकों को भोजन , खाद्य सामग्रियां और हथियार आदि मुहैया कराए जाते हैं ।
ऐसे में अगर पाकिस्तानी सेना का कब्जा इस इलाके में हो जाता तो कश्मीर पर उनकी पकड़ और मजबूत हो जाती है । यह सोचकर उस समय के तत्कालीन पाकिस्तानी गवर्नर जनरल परवेज मुशर्रफ ने यह सारी योजना बनाई थी ।
खास बात यह है कि इसी साल फरवरी महीने में पाकिस्तान और भारत के संबंधों को नए आयाम देने के लिए भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई सड़क मार्ग से बस से पाकिस्तान गए थे । वहां दोनों देशों के बीच तमाम सौहार्दपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए थे ।
इन सब के बावजूद पाकिस्तान ने भारतीय सैनिकों को -10 से -15 डिग्री के तापमान में उन्हें अपने भूमि से मारकर खदेड़ने के लिए मजबूर कर दिया ।
कारगिल युद्ध से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण सत्य
कारगिल युद्ध दुनिया की सबसे ऊंचाई पर लड़े जाने वाले युद्धों में से एक है । युद्ध में पाकिस्तानी सेना पहाड़ों के ऊपर थी और भारतीय सेना नीचे ऐसे में भारतीय सेना सिर्फ रात में ही हमला कर सकती थी । रात में जब वहां का तापमान – 10 डिग्री से -15 डिग्री तक होता था । जिस तापमान में इंसान का जिंदा रहना भी मुश्किल है उस तापमान में भारतीय सेना लगभग 50 दिनों तक युद्ध लड़ती रही और विजय प्राप्त किया ।
कारगिल युद्ध भारत पहला युद्ध था जिसका प्रसारण टेलीविजन पर किया गया । बरखा दत्त , सुधीर चौधरी जैसे पत्रकार दिनों – रात अपने जान पर खेल कर युद्ध क्षेत्र से हमारे लिए युद्ध के वीडियो लाते थे ।
कारगिल युद्ध में भारतीय वायुसेना और थलसेना ने साथ मिलकर भारत को जीत दिलाई थी । आर्मी ने इस युद्ध का नाम ऑपरेशन विजय और वायु सेना ने इस युद्ध का नाम ऑपरेशन सफेद सागर रखा था ।
4 जुलाई तक भारतीय सेना ने टाइगर हिल समेत सभी ऊंची चोटियों को वापस ले लिया था लेकिन युद्ध जीतने का औपचारिक ऐलान 26 जुलाई को किया गया इसी कारण इस को विजय दिवस के रुप में मनाते हैं ।
कारगिल युद्ध से ही अमर सैनिकों के मृत शरीर को उनके घर तक पहुंचाया जाने लगा । सैनिकों की शव यात्रा में सैकड़ों की भीड़ उमड़ने लगी और देश में राष्ट्रवाद अपने चरम सीमा पर पहुंच गया ।
कारगिल युद्ध ऐसा पहला युद्ध था जो दो परमाणु संपन्न राष्ट्रों के बीच में लड़ा गया था । 1980 में भारत और पाकिस्तान दोनों औपचारिक रूप से परमाणु संपन्न देश घोषित कर दिए गए थे ।
कारगिल युद्ध वह पहला युद्ध जिसमें पश्चिमी देशों ने भारत का साथ दिया था । इसमें इसराइल ने भारत को हथियार मुहैया कराए थे ।
इस युद्ध में बुफोर्स FH 77B ने निर्णायक भूमिका निभायी । इसके गोलों ने पाकिस्तानी की बनकरों को निस्तेनाबूद कर दिया ।
एक ओर भारत में इस युद्ध के बाद लोकसभा के 13 चुनाव में पूर्ण बहुमत से एनडीए की सरकार बनी । जिसमें अटल बिहारी वाजपेई को प्रधानमंत्री चुना गया । दूसरी ओर पाकिस्तान में लोकतंत्र का अंत हो गया । परवेज मुशर्रफ ने नवाज शरीफ का तख्ता पलट कर खुद को प्रधानमंत्री घोषित कर दिया ।
युद्ध के बाद 4 अमर शहीद जवान मनोज कुमार पांडे, विक्रम बत्रा ,योगेंद्र सिंह यादव और संजय यादव को परमवीर चक्र से नवाजा गया ।आज भी विक्रम बत्रा की “ये दिल मांगे मोर ” सभी को याद है ।
हाल ही में विक्रम बत्रा की प्रेम कहानी पर “शेरशाह” फिल्म भी आई थी जिसे दर्शकों ने बहुत पसंद किया था ।
कारगिल युद्ध के बाद से ही भारत में तीनों सेनाओं को जोड़ने के लिए एक उच्च पद होने का अनुभव किया गया था । जो की 2019 में सीडीएस (चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ) के रूप में सामने आया ।
कारगिल युद्ध के समय भारत के रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस थे । उन्होंने कहा था कि हमें अपनी भूमि से दुश्मनों को भगाना है जिंदा या मुर्दा ।
उस समय पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ थे जिन्हें यह पता तक नहीं था कि उनके देश में आखिरकार क्या हो रहा है । 2009 में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने अपने एक इंटरव्यू में कहा कि उस समय जब भारत ने उन्हें सूचित किया तब उन्हें इस बात की जानकारी मिली कि पाकिस्तानी सेना द्वारा भारत पर हमला किया गया है ।
आज कारगिल युद्ध और भारत के विजय को 23 साल पूरे हो चुके हैं । ऐसे में अपने दिलेर जवानों के लिए जो भी लिखा जाए कम है ।