श्रीलंका में गुस्सायी भीड़ ने किया राष्ट्रपति भवन पर कब्जा ।
कोलंबो: पिछले कई महीनों से श्रीलंका के बिगड़ते हालात ने अंतत जनता को राष्ट्रपति से उनका आवास छीनने के लिए मजबूर कर दिया ।
भयानक आर्थिक और राजनीतिक संकट से जूझते हुए श्रीलंका के लोगों ने राष्ट्रपति गोतबाया राजपक्षे और प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे पर इस्तीफे के दबाव बनाने के लिए राष्ट्रपति भवन और प्रधानमंत्री आवास पर कब्जा कर लिया है ।

सोशल मीडिया पर ऐसे तमाम वीडियो आ रहे हैं जिनमें लोग राष्ट्रपति के बेडरूम ,जिम, ड्राइंनिग हॉल स्वीमिंग पूल, किचन, लॉन और छत पर डेरा डाले हुए हैं ।
प्रदर्शनकारियों का कहना है कि यहां आकर वाकई ऐसा लगता है कि देश में शांति है ,कहीं भ्रष्टाचार नहीं है ,कहीं बिजली की कमी नहीं है, ना पानी की कमी है , न खाने की कमी है। यकीनन जब तक जान पर ना बना आए कोई भी ऐसी जगह को छोड़ना नहीं चाहेगा ।
राहत की बात यह है कि प्रदर्शन इस माहौल में श्रीलंका में प्रमुख विपक्षी दल अंतरिम सर्वदलीय सरकार के गठन पर राजी हो गये है ।
आपको बता दे कि प्रधानमंत्री महिंद्रा राजपक्षे के 9 मई के इस्तीफे के बाद रानिल विक्रमसिंघे ने दो महीने पहले ही 12 मई को प्रधानमंत्री का पद ग्रहण किया है ।
आखिर क्या है श्रीलंका के इस स्थिति तक पहुँचने का कारण
श्रीलंका के इस बिगड़ते स्थिति की जड़े लगभग एक दशक पुरानी है । जिसे कोरोना की वैश्विक त्रासदी और रूस यूक्रेन युद्ध ने और मजबूत कर दिया । जिसके कारण अपनी आजादी के लगभग 70 साल में पहली बार श्रीलंका को दिवालिया राष्ट्र घोषित कर दिया गया है ।
चीन से नजदीकियां और विदेशी कर्ज
• श्रीलंका के आर्थिक और राजनीतिक संकट में सबसे बड़ी हिस्सेदारी चीन से बढ़ती नजदीकियों की है । श्रीलंका ने राष्ट्र के विकास के लिए चीन से बड़ी मात्रा में लोन लिए जिसे चुकाने में आज श्रीलंका असमर्थ है ।
• इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड आईएमएफ के अनुसार श्रीलंका पर 35 बिलियन का कर्ज है । जिसमें सबसे अधिक चीन की हिस्सेदारी है । कर्ज न चुका पाने के कारण चीन ने श्रीलंका के हंबनटोटा पर कब्जा कर लिया है ।
• श्रीलंका को 7 मिलियन डॉलर मई में चुकाना था । जिसे न चुका पाने के कारण श्रीलंका को दिवालिया घोषित कर दिया गया है ।
कोरोना बड़ा कारण
• श्रीलंका का विदेशी मुद्रा भंडार लगभग समाप्त हो गया । विदेशों में नौकरी कर रहे श्रीलंकाई और पर्यटन श्रीलंका के प्रमुख विदेशी मुद्रा भंडार के स्रोत है । कोरोना महामारी और रूस – यूक्रेन युद्ध के कारण रूस – यूक्रेन में नौकरी कर रहे श्रीलंकाई और वहां से आने वाले पर्यटकों में भारी कमी आयी है ।
(तीन महीने पहले के आंकड़े )
• कोरोना से पहले श्रीलंका के जीडीपी में पर्यटन का हिस्सा 20% था जो कि अब मात्र 5% है ।
• कोरोना से पहले पर्यटन का रोजगार में हिस्सा 25 फ़ीसदी था जो अब मात्र 7 फ़ीसदी रह गया है ।
• कोरोना से पहले श्रीलंका का एफ़डीआई 80 करोड़ अमेरिकन डॉलर था जो अब मात्र 55 करोड अमेरिकन डॉलर रह गया है ।
• कोरोना से पहले विदेशी मुद्रा भंडार 750 करोड़ अमेरिकन डॉलर था जो कि अब मात्र 230 करोड़ अमेरिकन डॉलर रह गया है ।
सरकार की गलत नीतियां
पहले से ही आर्थिक तंगी और आवश्यक वस्तुओं की कमी से परेशान देश में अचानक से कृषि नीतियों में परिवर्तन कर दिया गया । सरकार ने जैविक कृषि को बढ़ावा देने के लिए रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग को पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया । जिससे कृषि उत्पादन में भारी कमी हुई और खाद्यान्न संकट गहराता चला गया ।
परिवारवाद का वर्चस्व
श्रीलंका में लंबे समय से परिवारवादी पार्टियां ही पक्ष विपक्ष सम्भाले हुए हैं । श्रीलंका के इस परिवारवादी राजनीति ने भी देश को आग में झोंकने के अहम भूमिका निभाई है । श्रीलंका में संघे और राजपक्षे दो पारिवारिक पार्टियों का ही पक्ष और विपक्ष पर कब्जा रहता है ।
श्रीलंका की जातिवादी नीतियां भी देश की ऐसी स्थिति डालने में सहयोगी है । श्रीलंका में 70 % श्रीलंकाई , 18 % तमिल और शेष ईसाई सिख रहते हैं ।
श्रीलंका के हालात
श्रीलंका के हालात इतने बुरे है कि ईंधनों के दाम आकाश छू रहे हैं। डीजल समाप्त हो चुका है। पैट्रोल 470रु प्रतिलीटर है । बिजली लगभग समाप्त होने की कगार पर है । बिजली के कमी से बड़ी बड़ी मीले बन्द हो चुकी है ।
कृषि उत्पादन में भारी कमी आने से खाद्यन्न वस्तुओं के दाम आम आदमी के जद से बाहर है । लोगों को जरूरत की वस्तुएं लेने के लिए लंबी कतारों में लगना पड़ा रहा है ।

ऑल सीलोन बेकरी ऑनर्स एसोसिएशन ने चेतावनी दी है कि तेजी से आर्थिक संकट और मौजूदा राजनीति के चलते एक-दो दिन में बाजार से ब्रेड गायब हो सकती है ।
एसोसिएशन के मुताबिक मौजूदा तेल संकट और इसमें इस्तेमाल वस्तुओं के दाम में बेतहाशा बढ़ोतरी के कारण बेकरीयों में 50 फ़ीसदी उत्पादन बंद हो चुका है ।
भारत का रुख
श्रीलंका के विकट स्थिति में भारत अपने ‘पहले पड़ोस की नीति’ के तहत श्रीलंका के सहयोग के लिए खड़ा दिख रहा है । भारत ने खाद संकट से श्रीलंका को राहत दिलाने के लिए 44 हजार टन यूरिया रविवार को श्रीलंका पहुँचा दी है।
भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा सभी तरह के हालात पर नजर रखी जा रही है और जरूरी मदद की जा रही है।