ए दिल मुझे ऐसी जगह ले चल जहां कोई ना हो :दिलीप कुमार

अब बस यादों में रह गये ; ट्रेजडी किंग ” दिलीप कुमार”

बॉलीवुड के ट्रेजडी किंग पहले सुपरस्टार दिलीप कुमार अब हमारे बीच से जा चुके हैं । आज सुबह 7 बज कर 30 मिनट पर मुगल ए आजम के सलीम इस दुनिया से रुख़सत हो गये । आपने दमदार अदाकारी के लिए जाने जानेवाले दिलीप साहब ने मुंबई के हिंदुजा अस्पताल में आखरी साँसे ली ।

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95 वर्ष के थे दिलीप साहब । काफी दिनों से अपने उम्र से लड़ कर अपनी साँसे बचा रहे थे । पर मृत्यु से भला कौन जीत सकता है । मौत के आखिरीकार उन्हें भी अपने आगोश में ले ही लिया ।उनके पार्थिव शरीर को शाम पांच बजे 5 सांताक्रूज में पंच तत्वों में विलीन किया आएगा । लेकिन उनकी यादें हमेशा उनके चाहने वालों के दिल में रहेगी क्योंकि सितारे मरते नहींं अमर होते हैं ।

यूसुफ भाई क्या गए, एक युग का अंत हो गया : लाता मंगेसकर

लाता मंगेशकर दिलीप कुमार को अपना बड़ा भाई मानती थी।उन्होंने अपनी और दिलीप कुमार की राखी की तस्वीरे सांझा करते हुए लिखा कि यूसुफ भाई अपनी छोटी सी बहन को छोड़कर चले गए उनके जाने से हिंदी सिनेमा का एक युग समाप्त हो गया ।

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दिलीप कुमार का सफर

दिलीप कुमार ने 1944 में अपने फिल्मी सफर की शुरुआत ज्वारभाटा फ़िल्म से की । लगभग 6 दसक वो फिल्मों में बतौर सुपरस्टार छाए रहे । अपने नए नए किरदार से लोगों का दिल जीतते रहे । हर किरदार को वह बखूबी निभाते थे कि दर्शकों को लगता था ये फ़िल्म नही हकीकत है ।

कभी वो शाहजादे सलीम बन गए तो कभी गंगा जमुना के गाँवति लड़के । हर किरदार को उन्होंने निभाया नहीं बल्कि जिया है । इसलिए तो उन्हें ट्रेजडी किंग कहते हैं । उन्होंने तकरीबन 63 फिल्मेंं की । 1998 में उनकी आखिरी फ़िल्म किला आयी थी ।

कुछ यूं था उनका सफर

वर्ष 1944 – ज्वार भाटा

वर्ष 1945 – प्रतिमा

वर्ष 1946 – मिलन

वर्ष 1947 – जुगनू

वर्ष 1948 – घर की इज्जत, शहीद, मेला, अनोखा प्यार, नदिया के पार

वर्ष 1949 – शबनम, अंदाज

वर्ष 1950 – जोगन, आरजू, बाबुल

वर्ष 1951 – हलचल, दीदार, तराना

वर्ष 1952 – दाग, संगदिल, आन

वर्ष 1953 – शिकस्त, फुटपाथ

वर्ष 1954 – अमर

वर्ष 1955 – देवदास, आजाद, उड़न खटोला, इंसानियत

वर्ष 1957 – मुसाफिर, नया दौर

वर्ष 1958 – यहुदी, मधुमति

वर्ष 1959 – पैगाम

वर्ष 1960 – कोहिनूर, मुगल ए आजम

वर्ष 1961 – गंगा जमुना

वर्ष 1964 – लीडर

वर्ष 1966 – दिल दिया दर्द लिया

वर्ष 1967 – राम और श्याम

वर्ष 1968 – आदमी, संघर्ष, साधु और शैतान

वर्ष 1970 – गोपी

वर्ष 1972 – दास्तान, अनोखा मिलन, कोशिश

वर्ष 1974 – सगीना, फिर कब मिलोगी

वर्ष 1976 – बैराग

वर्ष 1981 – क्रांति

वर्ष 1982 – शक्ति, विधाता

वर्ष 1983 – मजदूर

वर्ष 1984 – मशाल, दुनिया

वर्ष 1986 – धर्म अधिकारी, कर्मा

वर्ष 1989 – कानून अपना अपना

वर्ष 1990 – इज्जतदार

वर्ष 1991 – सौदागर

वर्ष 1998 – किला

कैसे बने मोहम्मद यूसुफ खान दिलीप कुमार

11 दिसम्बर 1922 में पाकिस्तान के पेशावर में जन्में मोहम्मद यूसुफ खान जिसके पिता गुलाम सरवर का फूलों का कारोबार था । भाल कौन कह सकता था कि वो एक दिल इतना बड़ा सुपरस्टार बन जायेगा कि सदी के अंत तक उसे याद किया जाएगा ।

1930 के दशक में यूसुफ अपने परिवार के साथ भारत आया । पहले मुंबई फिर पूणे में रहने लगा । एक बार शूटिंग के सेट पर अभिनेत्री देविका रानी की यूसुफ से मुलाक़ात हुई । देविका रानी उस समय बड़ी हस्तियों मे से एक थी । वो बॉम्ब टॉकीज के मालिक हिमांशू राय की पत्नी थी ।

उन्होंने युसूफ को फिल्मों में आने के लिए आमंत्रित किया । देविका ने यूसुफ से बस इतना पूछा की क्या उन्हें उर्दु आती है । यूसुफ ने हामी भरी और हिंदी सिनेमा को दिलीप कुमार मिल गए । हिंदी के प्रसिद्ध लेखक नरेंद्र शर्मा ने यूसुफ को तीन नाम सुझाये जहाँगीर , वासुदेव और दिलीप कुमार । दिलीप कुमार पर सहमति बनी इस तरह देविका रानी के यूसुफ जिसे कोई जानता नहींं था उसे सबकी जान दिलीप कुमार बना दिया ।

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