पंचायत ने लगाई नाबालिग के इज्ज़त की कीमत

50 हजार और 5 चप्पल : पंचायत ने बलात्कार जैसा मामला सुलझा दिया

भारत जैसे उच्च संस्कारों वाले देश में जहाँ कहते हैं कि जहाँ नारियां प्रसन्न रहती है वहाँ देवता निवास करते हैं । यहाँ तो नव रात्रि में माँ शक्ति के नौ रूप मानकर बच्चियों की पूजा की जाती है । उसी भारत में जब हम ये सुनते हैं कि किसी बच्ची के साथ दुष्कर्म कर उसे फेक दिया गया । किसी के साथ हैवानियत करके उसे जला दिया गया । तो बड़ा ही आश्चर्य होता है कि हमनें जिस भारत के बारे में किताबों में पढ़ा है वो भारत क्या यही है ।

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नयी दुनिया के शक्तिशाली नेता के रूप में उभरते भारत की ये तस्बीर जहाँ हर रोज ना जाने कितने नारियों को केवल इस बात की सजा मिलती है कि वो नारी है । उनके शरीर की बनावट थोड़ी अलग है । ये कैसा उच्च आदेशों वाला देश है ।

हालही में उत्तर प्रदेश के महराजगंज में एक 13 साल की बच्ची के साथ उसी के गांव के एक लड़के ने दुष्कर्म किया । हालांकि भारत में ये कोई नई बात तो नहीं है । शायद गलती उस लडकी की ही होगी जो वो अपने खेत में सब्जी तोड़ने गयी थी ।

जब पंचायत में बात गयी तो पंचों ने उस लड़की के इज्जत की कीमत लगा दी । दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में जहाँ पंचायती व्यवस्था की स्थापना ही सबकों न्याय दिलाने के लिये की गयी थी । वहाँ पंचायत एक लकड़ी के साथ बलात्कार होने पर बलात्कारी से पीड़िता को 50 हजार रुपये जुर्माना देने को कहती है और पीड़िता से बलात्कारी को 5 चप्पल लगाकर मामला रफा दफा करती है । ये तो है न्याय व्यवस्था ।

जब पंचायत के फैसले से असन्तुष्ट होकर पीड़िता के परिवार वाले पुलिस के पास जाते हैं तो पुलिस बलात्कार की जगह छेड़खानी का मामला दर्ज करती है । ये है सुरक्षा व्यवस्था


जब मामला एसपी तक पहुँच तब मामले में पॉक्सो एक्ट के तहत एफआईआर दर्ज किया जाता है । जिस देश में न्याय के विरुद्ध एफआईआर दर्ज करना इतना मुश्किल है उस देश में न्याय पाने में लगने वाले समय के बारे में कौन नहीं जानता है ।

अभी उस 13 साल की बच्ची को अपने न्याय के लिए इस समाज और यहाँ की व्यवस्था से ना जाने कितना लड़ना पड़ेगा । निर्भया की तरह न्याय तो उसे भी मिलेगा लेकिन समय बीतने के बाद ।

जहाँ एक ओर हमारा देश तेजी से विकास कर रहा है वही दूसरी ओर आज भी हमारे यहाँ न्याय इतनी देर से मिलता है कि न्याय , न्याय लगता ही नहीं । उसके मिलने पर ना ही खुशी मिलती है ना ही संतोष ।

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