समाज के लिए दीमक ;जातिवाद
पूरी दुनिया आतंकवाद को खत्म करने के लिए आज एक साथ आ रही है । जिन देशों को आतंकवादी संगठनों की फैक्ट्री कहते हैं ।उन इस्लामिक देशों का पूरा विश्व विरोध कर रहा है । विश्व के शिर्ष पर बैठे दिग्गज नेता आज आतंकवाद पर चर्चा कर रहे हैं उसे विश्व की सबसे बड़ी चुनौती बता रहे हैं । उस पर अरबों डॉलर खर्च करने की बात कर रहे हैं । उनकी बात और चर्चा दोनों सही हैं ।
लेकिन एक सच ये भी है कि आतंकवाद को ख़त्म करने से पहले उस दीमक को मारने की जरूरत है जो विश्व के सभी राष्ट्रों में उपस्थित है और देश को अंदर से खोखला कर रहा है । जी हाँ आज फिर हम बात उसी जातिवाद पर कर रहे है जो है तो पूरे विश्व में पर उसे दिखता कोई नही है । क्यों कि आज भी अपने गिरेबान में झाँकने की ताकत किसी भी देश के राष्ट्राध्यक्ष में नहीं है ।
हमारे नेता अपनी राजनीति चमकाने के लिए कहते रहते है कि देश में आतंकवाद सबसे ज्यादा गंभीर विषय है । इसे खत्म करने के लिए हमने ये योजना बयानी है । ये किया , वो करेगे । और पता नही क्या – क्या बोलकर हमारा ध्यान भटकाते और अपना काम निकाल कर चलते बनते हैं । पर देश में पल रहे आतंकवाद पर कोई चर्चा नहीं करना चाहता और करे भी क्यों उसी से तो उनकी रोजी रोटी है ।अगर जातिवाद नहीं होगा तो वो चुनाव कैसे जीतेंगे ।
जातिवाद और आतंकवाद दोनों एक जैसे
खैर हम बात कर रहे है जातिवाद की
यहाँ ये मूल प्रश्न उठता है कि
जातिवाद क्या है ? जिस जाति में पैदा हुए हैं उसपर गर्व करना या जिस जाति के है उसे संसार की सबसे महान जाति मानते हुए उसके महानता को सिद्ध करने के लिए ऐसे काम करना जो नैतिकता की दृष्टि से गलत हो । मेरे लिए तो दोनों जातिवाद ही है ।
जो लोग कहते हैं कि मेरी जाति ने देश के लिए बहुत बलिदान दिए है तो मैं उसपर गर्व कैसे ना करू । तो ऐसे लोगो को ये याद रखना चाहिए की भारत में पहले एक वर्ण व्यवस्था थी । जिनमें सभी का कार्य निश्चित हुआ करता था ब्राह्मणों को बुद्धि संबंधित कार्य थे तो क्षत्रियों को देश की रक्षा संबंधित कार्य । अर्थव्यवस्था का कार्य वैश्य समाज देखते थे और सबकी सेवा शुद्र करते थे । अगर ऐसे में ब्राह्मणों और क्षत्रियों ने देश की सेवा की तो क्या वैश्य और शूद्रों ने नहीं की थी ।
उनका इतिहास भी गौरवशाली है दुर्भाग्य यह है कि हम उसे पढ़ नहीं सकते हैं सभी वर्गों ने देश के विकास में , आर्यावर्त के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है । ऐसे में किस आधार पर हम केवल अपने जाति पर गर्व करते हैं ।
मेरे मानना है कि जातिवाद के ये दोनों लक्षण अपनी जाति पर गर्व करना । दूसरों की जाति को निम्न मानना और अपने जाति के वर्चस्व को स्थापित करने का प्रयत्न करना आतंकवाद से मिलते जुलते है । आतंकवादी भी तो यहीं करना चाहते है बस अंतर ये है कि वो देश के बाहर से आते हैं और जातिवादी अंदर से ।
बाहर के खतरों से लड़ना आसान है पर अंदर के अदृश्य शत्रु का सामना करना बहुत कठिन होता है । घर के भीतर के दीमक बाहर के शेर से भी ज्यादा खतरनाक होते हैं । मेरी बस इतनी सी गुजारिश है कि जितनी शिद्दत से पूरा विश्व आज आतंकवाद के खिलाफ उतरा है उतनी ही शिद्दत से एक बार जातिवाद के खिलाफ मुहिम छेड़ना आवश्यक है ।
इसमें राजनीतिक चेतना से अधिक आवश्यक सामाजिक चेतना है क्योंकि जातिवाद समाज की बुराई है और इसे केवल समाज ही नष्ट कर सकता है ।
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