परिधान नहीं रोक सकता हौसले की उड़ान : सरला ठकराल

साड़ी में उड़ाया प्लेन ,बनी भारत की पहली महिला पायलट : सरला ठकराल

सरला ठकराल साड़ी, चूड़ी और कंगन इन जंजीरों में बंधकर अपने सपनों को पाना नामुमकिन है । भारतीय परम्पराओं को निभाने हुए अपनी इससे अलग पहचान बनाना नामुमकिन है । कुछ कार्य केवल पुरुष ही कर सकते हैं महिलाओंं के लिए वो करना असंभव है । ऐसी बातें हमें अक्सर सुनने को मिल जाती है । जबकि महिलाओं ने हमेशा इन बातों को मिथ्या सिद्ध किया है ।

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आज की वर्तमान परिस्थिति में तो महिलाएं पुरुषों के साथ हर क्षेत्र में कदम से क़दम मिला रही है । लेकिन जब परिस्थिति हमारे अनुकूल नहींं थी तब भी महिलाएंं पुरुषों से पीछे नहीं थी । इस बात का जीता जागता उदाहरण है सरला ठकराल ।


सरला ठकराल ने 1936 में दो पंखे वाले एक विमान को उड़ाकर सबकों बता दिया कि चूड़ी पहनने वाले हाथ उड़ान भी जानते हैं । खास बात ये है कि विमान उड़ाते समय उन्होंने साड़ी पहनी हुई थी ।आज गूगल ने भारत की इस बेटी के जज्बे को सलाम करते हुए उनके 107 वेें जन्मदिन पर Doodle बनाकर उन्हें श्रद्धांंजलि दी ।


सरला ठकराल का जन्म गुलाम भारत के दिल्ली में 8 अगस्त 1914 में हुआ था । जब ये 16 साल की थी तब इनकी शादी कर दी गयी थी । इनके पति एयरमिल पायलट थे उन्हीं से इन्हें विमान उड़ने की प्रेरणा मिली । परिवार की जिम्मेदारी के बीच इन्होंने अपने सपने को पूरा किया । 1936 में 21 साल उम्र में इन्होंने डबल विंग वाले एक विमान को उड़ाकर इतिहास रच दिया था । उस समय ये एक बेटी की माँ थी । जिस परिवेश में महिलाएं घर से नहीं निकल सकती थीं, ये आकाश तक पहुँच गयी ।

विमान उड़ाने का लाइसेंस प्राप्त करने वाली पहली महिला

इन्होंने1000 घंटे विमान उड़ाकर विमान उड़ाने का लाइसेंस प्राप्त किया था । और भारत पहली विमान उड़ाने का लाइसेंस प्राप्त करने वाली महिला बनी । 1939 में कैप्टन पी ड़ी शर्मा की एक विमान हादसे में मौत हो गयी । तब उन्होंने कमर्शियल पायलट की तैयारी शुरू कर दी लेकिन द्वितीय विश्व युद्ध के कारण उनका ये सपना पूरा नहींं हो सका । वो एक पायलट के तौर पर अपना करियर नहीं बना सकी ।


लेकिन उन्होंने हिम्मत नहींं छोड़ी । बाद में लाहौर के मायो स्कूल ऑफ आर्ट से फाइन आर्ट्स और पेंटिंग की शिक्षा ली । विभाजन के बाद ये दिल्ली आगयी और स्वयं को उस दौरान में एक सफल उद्यमी , पेंटर और कॉस्ट्यूम डिजाइनर के रूप में स्थापित किया । 1948 में उन्होंने पुनर्विवाह किया । 15 मार्च 2008 में इनका निधन हो गया ।

अपने जीवन में इन्होंने कभी हार नहीं मानी जब उन्हें लगा कि जिस राह पर चलना चाहती है उसपर सफलता नहीं मिलेगी तो उन्होंने राह बदल कर अपने जीवन को सफल बनाया और महिलाओं के विषय में लोगों की जो परम्परागत सोच थी । उसे तोड़ने में सफल हुुुई । ऐसी नाारीशक्ति को हमारा नमन ।

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