तिरंगा : एक सफर

राष्ट्र को ध्वज के रूप में मिला तीन रंगों का तिरंगा

देश अपने आजादी के 75 वे महोत्सव को अमृत रूप देने का हर सम्भव प्रयास कर रहा है ।   पिछले एक साल में देश की स्वतंत्रता से जुड़े हर बलिदान को याद किया गया ।हर शहर ,हर गांव, हर जिले, हर विद्यालय  ,महाविद्यालय विश्वविद्यालय में सभाएं संगोष्ठी यात्राएं हुई । सोशल मीडिया पर अमृत महोत्सव छाया रहा । 

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अब यह महा उत्सव अपने आखिरी पड़ाव की ओर है । विगत रविवार को देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने कार्यक्रम ‘मन की बात ‘ में अमृत महोत्सव की  यात्रा को तीन रंग भरने का आवाहन किया ।

अमृत महोत्सव को जन आंदोलन बनाने के लिए मोदी ने 13 से 15 अगस्त तक हर घर तिरंगा फहराने के साथ ही अपने सोशल मीडिया की प्रोफाइल में 2 से 15 अगस्त तक तिरंगे को स्थान देने का आग्रह किया । प्रधानमंत्री ने स्वयं अपने सभी सोशल मीडिया अकाउंट के प्रोफाइल को तिरंगामय कर दिया है।

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राष्ट्रीय ध्वज का इतिहास

भारत की आजादी , एकता ,संप्रभुता, अखंडता का प्रतीक हमारा राष्ट्रीय ध्वज जिसे हम तिरंगा कहते हैं । उसे तिरंगा बनाना इतना आसान नहीं था । लगभग 3 दशकों की यात्रा में तिरंगा कई रंगों में ढाल , स्वतंत्रता की आग में जला तब जाकर भारत की राष्ट्रीयता का आधार बना ।


सिस्टर निवेदिता ध्वज

इसकी यात्रा  1904 – 05 से  आरम्भ हुई , जब पहली बार देश में राष्ट्रीय ध्वज को अपनाया गया । उस समय इसे विवेकानंद की आयरिश शिष्या सिस्टर निवेदिता में तैयार किया था । इसमें लाल और पीले रंग की दो पट्टियां थी । लाल आजादी का और पीला जीत का प्रतीक था ।
इस पर बंगाली  में ‘वन्दो मातोरम्’ अर्थात वंदे मातरम् लिखा था ।  इंद्र के व्रत को ताकत और सफेद कमल को पवित्रता का प्रतीक मान इस पर इंगित किया गया था ।  इस झंडे को सिस्टर निवेदिता ध्वज कहा जाता था ।

तीन रंगों का पहला ध्वज

1906 में राष्ट्रीय ध्वज के रूप में कुछ परिवर्तन किए गए इस समय पहली बार तीन रंगों का झंडा सामने आया जिसमें ऊपर नीला बीच में पीला और अंत में लाल रंग को स्थान दिया गया । इसमें नीली पट्टी में आठ अलग-अलग रंगों के तारे , सबसे नीचे लाल पट्टी में एक और उगता सूरज और दूसरी ओर  अर्द्ध चंद्रमा और एक सितारा और बीच की पीली पट्टी में देवनागरी लिपि में वंदे मातरम् उत्कृण किया गया था ।

इसी साल सचिंद्र प्रसाद बोस व सुकुमार मिश्रा झंडे के रंगों को परिवर्तित करते हुए सबसे ऊपर केसरिया बीच में पीला और नीचे हरे रंग को स्थान दिया। इसमें ऊपर 8 आधे खिले हुए कमल बने थे । इसको बंगाली ध्वज और कमल ध्वज के नाम से जाना गया। 1906 का ही वक्त था जब बंगाल विभाजन हुआ और इसी वर्ष सुरेंद्रनाथ बनर्जी ने 7 अगस्त को कोलकाता पारसी बागान चौराहे पर भारत का झंडा फहराया था ।

विदेश में लहराया राष्ट्रीय ध्वज

वर्ष 1907 तिरंगे में रंगों के परिवर्तन का क्रम वैसे ही जारी रहा । मैडम भीकाजी कामा , विनायक दामोदर सावरकर राम श्री कृष्ण वर्मा ने झंडे में नए रंगों का प्रयोग किया । जिसमें सबसे ऊपर हरा बीच में केसरिया और अंत में लाल रखा गया । इस ध्वज को सबसे पहले भीकाजी कामा ने 22 अगस्त 1907 में जर्मनी में फहराया । इससे ‘भीकाजी कामा ध्वज’ तथा ‘बर्लिन कमेटी ध्वज’  के नाम से जाना गया । 

पिंगली वेंकैया ने बनाया तिरंगे का वर्तमान रूप

पहली बार पिंगली वेंकैया ने 1916 में राष्ट्रीय ध्वज बनाया  । जिसमें  हिंदूत्व  का प्रतीक लाल  और इस्लाम के प्रत्येक हरे रंग और देश के हस्तशिल्प कला का प्रतीक बापू का चरखा दिखाया गया था । लेकिन राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने राष्ट्रीय ध्वज को धार्मिक तौर देश को बांटने वाला मान कर अस्वीकार कर दिया । गांधी ऐसा ध्वज चाहते थे जिसमें राष्ट्र की एकजुटता साफ – साफ नजर आए ।

1921 में राष्ट्रीय ध्वज में तीन रंग दिखे

जिसमें ऊपर सफेद बीच में हरा और आखरी में लाल था जो कि हिंदू , मुस्लिम , सिख धर्म को दर्शा रहा था और इसके बीच में बना चरखा  सभी को एक साथ जोड़ हुए था । कांग्रेस पार्टी के न अपनाए जाने के बावजूद कई वर्षों तक यह ध्वज राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम का सम्बल बन खड़ा रहा ।

वर्ष 1931 देश की शान बन तिरंगा , भारत की पहचान बना

इतनी लंबी यात्रा तय करने के बाद आखिरकार राष्ट्रीय ध्वज को वो तीन रंग मिल गए । जिसे हम आज तिरंगा कहते हैं । 1931 में जब ध्वज को  सांप्रदायिकता के प्रतीक बनने से रोकने के लिए  लाल रंग गेरुआ कर दिया गया जो कि हिंदू और मुस्लिम दोनों का प्रतीक था । तब सिखों ने झंडे में अपने धर्म को भी स्थान देने की मांग की ।

फिर पिंगली वेंकैया ने एक नए  ध्वज  का निर्माण किया । जिसमें सबसे ऊपर केसरिया , बीच में सफेद और अंत में हरे रंग योग बिठाया । सफेद पट्टी में नीले रंग का चरखा देश के हस्तशिल्प उद्योग का प्रतीक बन अड़ा था । 1931 के कराची अधिवेशन में कांग्रेस ने इसे  आधिकारिक तौर पर भारत का राष्ट्रीय ध्वज बना दिया ।

तिरंगे में आखिरी संशोधन के तौर पर चरखे की स्थान पर सारनाथ अशोक स्तंभ से लिए गए अशोक चक्र को स्थान दिया गया ।
इस तरह बनकर तैयार हुए  तिरंगे को 22 जुलाई 1947 , आजादी के 24 दिन पहले पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा संविधान सभा में पेश किया गया जिसे सभी ने आधिकारिक तौर पर राष्ट्रीय ध्वज स्वीकार किया ।

तभी से यह भारत की आन मान शान बना हुआ है ।

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आज यानी 2 अगस्त को तिरंगे के निर्माता पिंगली वेंकैया का जन्म दिवस है । इनका जन्म 2 अगस्त 1876 में आंध्र प्रदेश के मछलीपट्टनम के भाटलापेनुमरु में हुआ था ।

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