कौन कहता है कि केवल पंखोंं से उड़ा जाता है मैंने हौसले से भी लोगों को उड़ते देखा है ।
जिंदगी की उड़ान पंखों से नहीं हौसले से होती है । हमारे स्वतंत्रता भारत के पहले स्वर्ण विजेता धावक उड़न सिख मिल्खा सिंह पर ये उक्ति पूरी तरह चरितार्थ होती है । कल की काली रात ने हमारे उड़न सिख को हमसे छीन लिया । 30 दिन तक कोरोना को पीछे छोड़कर दौड़ने वाले मिल्खा सिंह की रफ्तार आखिरकार इस महामारी ने रोक ही दी । उडन सिख 91 साल की उम्र में इस धरती से उड़ गए । 5 दिन पहले उसकी पत्नी भारतीय बॉलीबॉल टीम की पूर्व कप्तान निर्मला सिंह का निधन हुआ था ।
बटवारे से उड़न सिख तक , मिल्खा सिंह
मिल्खा सिंह जिन्हें आज पूरी दुनिया उड़न सिख के नाम से जानती है । उसी मिल्खा सिंह के बचपन को अगर देखे तो समझ आएगा कि उड़ने के लिए पहले नंगे पांव चलना पड़ता है । अगर बात करें मिल्खा सिंह के बचपन की उनका जन्म 20 नवंबर 1929 को गोविंदपुरा की एक सिख राठौर परिवार में हुआ था । उनके 15 भाई बहन थे । कई भाई बहनों की छोटी उम्र में ही मौत हो गई थी । जब 1947 में भारत-पाकिस्तान का बंटवारा हुआ तो यह गोविंदपुरा पाकिस्तान के हिस्से में गया ।
जिस बंटवारे का नाम सुनकर हम काँँप उड़ते हैं उस बंटवारे को उन्होंने किया था । बंटवारे ने उनसे उनके माता पिता और दो बहनों को भी छीन लिया । पाकिस्तान से महिला बोगी मेंं सीट के नीचे छिपकर वो दिल्ली पहुंचे । वहां शरणार्थी बनकर कुछ दिन रुके लेकिन जिसके किस्मत में ही उड़ना हो उसे कोई दर्द भला कैसे रोक सकता है अपने दर्द को पीछे छोड़कर वो जीवन की ओर बढ़ने लगे । शरणार्थी शिविर में रहने के दौरान दिल्ली रेलवे स्टेशन के पास फुटपाथ पर बने एक ढाबे में बर्तन साफ करके में अपने जीवन के नए अध्याय को शुरू किया ।
फिर अपने बड़े भाई मलखान सिंह के कहने पर उन्होंने सेना में भर्ती होने का दृढ़ निश्चय किया चौथे प्रयास में सन 1951 में वह सेना में भर्ती हो गए उसके बाद उन्होंने भारत के लिए जीने का सिलसिला शुरू किया । क्रांस कंट्री रेस में वो छठे स्थान पर आए । इसी समय उनके अंदर के हीरे की परख भारतीय सेना ने कर ली उन्हें खेलकूद के स्पेशल ट्रेनिंग के लिए चुना गया ।
उपलब्धिया
सन 1956 में उन्हें मेलबर्न में आयोजित ओलंपिक खेलों में 200 और 400 मीटर रेस में भारत का प्रतिनिधित्व किया ।
सन 1958 में कटक में आयोजित राष्ट्रीय खेलों में उन्होंने 200 और 400 मीटर की दौड़ में राष्ट्रीय कीर्तिमान स्थापित किया। एशियन खेलों में भी इन दोनों प्रतियोगिताओं में स्वर्ण पदक हासिल किया ।
वर्ष 1978 में उन्हें एक और महत्वपूर्ण सफलता मिली जब उन्होंने ब्रिटिश राष्ट्रमंडल खेलों में 400 मीटर प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक हासिल किया इस प्रकार वह राष्ट्रमंडल खेलों के व्यक्तिगत स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीतने वाले भारत के पहले धावक बन गए ।
1958 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया । सन 1958 में ही एशियाई खेलों में सफलता के बाद सेना ने मिल्खा को जूनियर कमीशंड ऑफिसर के तौर पर पदोन्नत कर सम्मानित किया ।
पंजाब सरकार ने उन्हें राज्य के शिक्षा विभाग में खेल निदेशक के पद पर नियुक्त किया इस पद से वो 1998 में सेवानिवृत्त हुए।
2001 में सरकार ने उन्हें अर्जुन पुरस्कार देने की पेशकश की लेकिन हमारे मिल्खा सिंह ने उसे ठुकरा दिया ।
कैसे मिला मिल्खा सिंह को उड़न सिख का खिताब
पाकिस्तान से भारत आए मिल्खा सिंह को 1960 में पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल अयूब खान ने लाहौर की ओर से भरने का निमंत्रण दिया।
मिल्खा सिंह ने इस निमंत्रण को ठुकरा दिया क्योंकि उनके यादों में अब भी बंटवारे के वक्त यादे ताजा थी और ताउम्र वैसे ही उनके सीने में जलती रही । जिसने उनसे और उनके जैसे अनेकों लोगों से उनका सब कुछ छीन लिया था ।
वो लाहौर जाने को तैयार नहीं थे पर यहाँ बात भारत के सम्मान की थी इसलिए वह पंडित जवाहरलाल नेहरू के आग्रह को टाल ना सके । देश के लिए मिल्खा सिंह बाघा बॉर्डर के रास्ते पाकिस्तान पहुंचे । उन्हें खुली जीप में लाहौर ले जाया गया । रास्ते भर सड़क के दोनों ओर हाथों में भारत पाकिस्तान के झंडा लिए लोगों की भीड़ मिल्खा को देखने के लिए उमड़ी रही ।
रेस में मिल्खा का मुकाबला एशिया के तूफान कहे जाने वाले पाकिस्तानी धावक अब्दुल खालिक से था । उस रेस में मिल्खा सिंह दौड़े नही उड़े । उनकी रफ्तार हवा से बाते कर रहें थे । वही पाकिस्तान के तात्कालिक राष्ट्रपति जनरल अयूब खान ने रेस के बाद के गले में मेडल डालते हुए पंजाबी में कहा मिल्खा जी , तुस्सी पाकिस्तान दे विच अज्ज दौड़े नहीं । तुस्सी अज्ज पाकिस्तान दे विच उड़े हो । उन्होंने ने ही मिल्खा जी की उड़न सिख का खिताब दिया ।
वही हमारा सिख फ्लाइंग सिख बन गया । जहाँ जिंदगी ने उनसे उनका सब कुछ छीन लिया वही जिंदगी ने उन्हें एक नया नाम दिया । उसके बाद मिल्खा सिंह उड़न सिख के नाम से पूरी दुनिया में मशहूर हो गए ।
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