विभाजन का दर्द भूलने की बात नहीं
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के पूर्व 14 अगस्त को विभाजन के दर्दनाक पलों को याद करने के लिए विभाजन विभीषिका दिवस मनाने की घोषणा की ।कुछ लोग इसे सियासी दाव कह रहे है । प्रधानमंत्री ने उन लोगों जवाब देते हुए लाल किले के प्राचीर से कहा ये श्रद्धांजलि है उन लोगोंं को जिन्हें मृत्यु के बाद दो गज जमीन या चिता की आग तक नसीब नहीं हुई ।
विभाजन की विभीषिका पर एक नजर
हमारे देश की आजादी को पूरे 75 साल होगये । हमारे देश ने अपनी 75 साल की यात्रा पूरी कर ली । आज से 75 साल पहले हमारे देश को स्वतंत्र कराने के लिए अनेक वीरोंं और वीरांगनाओं ने अपना बलिदान दे दिया । तब जा कर कही वो 15 अगस्त 1947 की पुण्यतिथि आयी । जब हमारे देश में हमारा तिरंगा स्वतंत्र रूप से लहरा सका ।
इस दिन को प्राप्त करने से पहले भारत को उस भयावह रात से गुजरना पड़ा जब भारत का कुछ हिस्सा उससे अलग हो कर पाकिस्तान के नाम से नया मुल्क बन गया । इस विभाजन में असंख्य लोगों की जाने गयी । रातों रात लोगों की पहचान बदल गयी । जो लोग सदियों से एक साथ रहते थे । वो अचानक दुश्मन बन गए ।
सुबह हम आजाद देश में होंगे ऐसा सपना लेकर सो रहे अनेकों लोगों के सर रात में ही काट दिए गए । ट्रेन से भर भर कर हजारों शव भारत आये थे । लाखों की संख्या में लोग विस्थापित हुए थे । अपना घर और सम्पति छोड़ कर भारत जो अब पाकिस्तान था वहां से भागने के लिए मजबूर हो गए । कुछ के तो परिवार भी छूट गए।
एक आंकड़े के मुताबिक करीब 80 लाख लोग विस्थापित हुए । और पांच से दस लाख लोग मारे गए । 1987 में आयी गोविंद निहलानी की फ़िल्म ‘तमस’ में इस नरसंहार को दिखाया गया है । 1973 में एम. एस. सथ्यू द्वारा निर्देशित फ़िल्म ‘गरम हवा’ में विभाजन के परिणाम स्वरुप विस्थापितों की मानसिक वेदना और ऊहापोह की स्थिति को दिखाया गया । प्रसिद्ध साहित्यकार खुशवंत सिंह ने भी 1956 प्रकाशित अपने पुस्तक ‘ट्रेन टू पाकिस्तान’ ने विभाजन की त्रासदी का शब्द चित्रण किया ।
महिलाओं का शोषण
विभाजन के दौरान सबसे दयनीय स्थिति महिलाओं की थी उनका अपहरण कर जबरन धर्म परिवर्तन कराए गए । सरकार की लापरवाही से भी महिलाओं की बहुत ही कष्ट सहना पड़ा । विभाजन के बाद जो औरते पाकिस्तान या भारत में अकेली छूट गयी थी । उनके पास जब वापस आने का विकल्प नही बचा तो उन्होंने वही अपने दिल पर पत्थर रख कर वही पर अपना नया संसार बसा लिया ।
और जब वो धीरे धीरे समय के साथ वहाँँ घुल मिल गयी ।तो दोनों देशों की सरकारों ने समझौता कर उन्हें वहाँँ से उखाड़ कर फिर से उनके पुराने परिवार के पास भेज दिया । ऐसे में उन महिलाओं की मानसिकता स्थित का अंदाजा लगाया जा सकता है ।
ये बाते तो कुछ भी नहीं उन लोगों को और भी क्या क्या सहन करना पड़ा होगा इसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते है । और ना हमारे पास फुर्सत है ।ये सोचने की कैसा लगता जब किसी अपने की लाश आँखों के सामने पड़ी हो और हम उसका अंतिम संस्कार भी नहीं कर सकते हो क्योकि हमेंं अपने और अपनों की जान बचाने के लिए भागना है ।
कैसा लगता है जब भागते वक्त अपने बच्चे का हाथ छूट जाता है और वो ट्रेन पर नहीं चढ़ पता । उसे वही मरने के लिए छोड़ कर हमें आगे बढ़ना पड़ता है । ये सब सोचकर हमें क्या मिलेगा । हमे तो 26 जनवरी 1950 को हमारा संविधान मिल गया । हमारा देश अपने नियमों से संचालित होने लगा ।
देश विकास करता गया ।हमारा देश नए नए कीर्तिमान स्थापित करता गया। हम एक शक्तिसम्पन्न विकासशील देश के नागरिक बन गए । हम नई समस्याओं और नए औसरो में उलझते गए । भारत विश्व के आकाश का एक एक उज्जवल नक्षत्र बनकर चमके लगा । और हम अपनी भाग दौड़ भारी जिंदगी में उनलोगों को याद करना भूल गए जिनकी लाशों की सीढ़ी पर चढ़ कर भारत यह तक पहुंच ।
वो तो भला हो हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का जिन्होंने उन लोगों की स्मृति में जिन्हें अंतिम संस्कार भी नसीब नहीं हुआ विभाजन विभीषिका दिवस मनाने की घोषणा की । ताकि पूरा देश उन्हें श्रद्धांजलि दे सके और 75 साल बाद ही सही पर उनकी आत्मा को शांति मिले ।