विचारों की अनसुलझी दुनियां में उलझी युवा पीढ़ी

विचारों की अनसुलझी दुनियां में उलझी युवा पीढ़ी

युवा : अगर इसे समझने की कोशिश करें तो अकेले ही समस्त विश्व को स्वयं में समेट लेने की अथाह शक्ति है और जो ना समझे तो महज़ एक शब्द मात्र। किसी भी राष्ट्र के बेहतर निर्माण के लिए वहां की युवा पीढ़ी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। देश का उज्जवल भविष्य इनसे ही तय होता है।

वर्तमान परिदृश्य में युवा विचारों की एक अनसुलझी दुनिया में ही उलझे हुए हैं। इनके दिन की शुरुआत ही विचारों के अनंत सागर में गोता लगाने से होती है और इसी में डूबते-उतराते खत्म हो जाती है। एक ऐसी दुनिया जहां पर सिर्फ पैसा,नाम,शोहरत और दूर कहीं उस आकाश में निकले सूरज को छू लेने का स्वप्न होता है। इनके आसपास रिश्ते-नाते,प्यार और अपनापन का दूर-दूर तक कहीं कोई दृश्य नजर ही नहीं आता।

इन्हें पता ही नहीं कि रिश्ते और प्यार जैसे कोई शब्द भी इस धरती पर अस्तित्व में हैं। इनके लिए जिंदगी का मतलब है एक ऊंचा मुकाम,चकाचौंध से भरा विलासिता पूर्ण जीवन और इसी के इर्द-गिर्द घूमती है इन की दुनिया। ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार सूर्य के चारों ओर पृथ्वी चक्कर लगाते रहती है।

 युवा पीढ़ी
विचारों की अनसुलझी दुनियां में उलझी युवा पीढ़ी

बचपन में टिमटिमाते उन तारों को देखने पर बताया जाता था कि ये ढ़ेर सारी सफेद परियां हैं जो हमारे ख्वाबों को मुकम्मल करती हैं।जैसे-जैसे हम बड़े होते गए यही सफेद परियां हमारे लिए सिर्फ एक तारा बन कर रह गईं। जिसे हम इतनी शिद्दत से एकटक देखा करते थे आज हमारे लिए उनका कोई महत्व ही नहीं है। अपनी दुनिया में हम इतने लीन हो गए हैं कि भूल चुके हैं कि हमारे पास प्रकृति की बेशुमार खूबसूरती है जो हमें एक सुकून की ओर ले जाती है।

4 बाई 4 इंच के कांच के उस स्क्रीन पर अपनी कोमल और नाजुक उंगलियों से अपने अंदर उड़ते भावनाओं का संप्रेषण करता वो युवा सामाजिक गतिविधियों से दूर कहीं अपने ही विचारों में सिमट कर रह जाता है। ताजुब्ब तो तब होता है जब सड़क पर किसी घायल इंसान को अस्पताल में पहुंचाने के बजाय हम उसकी वीडियो और सेल्फी सोशल मीडिया पर पोस्ट करते हैं। कोई इतनी शुन्य अवस्था में कैसे हो सकता है? हम फेसबुक कौर इंस्टाग्राम पर अपने लाइक्स कमेंट्स और फॉलोअर्स के लिए इतने अमानवीय व्यवहार कैसे कर सकते हैं?

अगर यह कहा जाए कि आज की युवा पीढ़ी दो विचारों में विभाजित है तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं होनी चाहिए। एक विचारधारा जो प्रेम,मानवता और सकारात्मकता का संदेश दे रही है तो वहीं दूसरी विचारधारा दिन-प्रतिदिन नकारात्मकता गर्त में गिरती जा रही है।

इसका एक अंग राष्ट्र के निर्माण में अपना सर्वोच्च योगदान देकर देश को हर दिन नए आयाम की ओर ले जा रहा है तो दूसरा उस आयाम को धूमिल करने पर आतुर है। एक तरफ सरहद पर दुश्मनों को उनकी हद दिखाता 20 साल का नौजवान फौजी वतन के हिफाजत में शहादत दे देता है तो दूसरी तरफ इसी उम्र का युवा संविधान को ताक पर रखकर उसके हर सिद्धांतों का खंडन करता है।

अब वक्त है खुद में थोड़ा बदलाव लाने की। खुद को पहचानने की और स्वयं को तलाश करने की। हां अब समय आ गया है ख्वाबों की उस दुनिया से बाहर निकल कर खूबसूरत ज़हां को महसूस करने की। अपने अस्तित्व,अपनी मानवता और इंसानियत को जिंदा रखते हुए प्रेम और उसके साथ सारे रिश्ते को एक सूत्र में बांधे हुए कुदरत की इस नायाब खूबसूरती से गुजरते हुए हमें अपना मुकाम बनाना है,अपनी एक अलग पहचान बनानी है।

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