वाराणसी: हिंदुस्तान में सियासत से लेकर सोशल मीडिया तक हर ओर नुपूर शर्मा,लीला,काली और महुआ मोइत्रा ही चर्चा में हैं। यूं समझ लीजिए की धर्म का महासंग्राम छिड़ा हुआ है और आम जनता हो या सियासतदार सभी इसमें यथासंभव अपना योगदान दे रहे हैं।
क्या है पूरा विवाद
इस पूरे विवाद की शुरुआत दो जुलाई को कनाडा की फिल्ममेकर लीला मणिमेकलाई की डॉक्यूमेंट्री फिल्म काली के विवादित पोस्टर से हुआ। यह विवाद अभी थमा भी नहीं था कि पांच जुलाई को टीएमसी नेता महुआ मोइत्रा के ‘मां काली के मांस और शराब के सेवन’ वाले बयान ने इसमें आग में घी का काम किया। देश के कई शहरों में लीला और मोइत्रा के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया है। उनसे माफी की मांग की जा रही है, लेकिन दोनों अपनी करनी पर कायम हैं। ना तो लीला मणिमेकलाई पीछे हटने को तैयार है और ना ही महुआ मोइत्रा अपने बयान से पीछे हट रही हैं। ंं
देवी देवताओं का अपमान करने वाले तमाम प्रदर्शनों के बावजूद तटस्थ हैं और अपनी पूरी ताकत के साथ विरोध करने वालों पर पलटवार कर रहे हैं। लीला मणिमेकलाई ने मां काली के बाद अब भगवान शंकर और मां पार्वती की विवादित फोटो ट्वीट की है तथा सबसे बड़े लोकतंत्र को सबसे बड़ी हिट मशीन कहा है। वहीं दूसरी ओर टीएमसी नेता महुआ मोइत्रा ने अपनी सफाई में एक के बाद एक कई ट्वीट किए हैं। उन्होंने कहा कि बंगालियों को ना सिखाएं मां काली की पूजा करना।
मां काली के अपमान के बाद देशभर में कई एफआईआर दर्ज किए गए हैं। अब मध्य प्रदेश सरकार लीला पर एक्शन के मूड में है। सूबे के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने टि्वटर के सीईओ पराग अग्रवाल को एक चिट्ठी लिखकर लीला के टि्वटर हैंडल को सस्पेंड करने की मांग की है।
स्वतंत्रता के नाम पर जन भावनाओं का अपमान कब तक
भारतीय संविधान ने देश के नागरिकों को कुछ मौलिक अधिकार दिए हैं। इसी में से एक है अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार जिसका अर्थ है कि हमें बोलने की पूरी आजादी है। बीजेपी की पूर्व प्रवक्ता नूपुर शर्मा का पैगंबर मोहम्मद पर विवादित बयान हो,लीला मणिमेकलाई का पोस्टर ट्वीट हो या महुआ मोइत्रा का मां काली के शराब सेवन वाली बात हो। इन सारी बातों का सीधा संबंध हमारे बोलने की स्वतंत्रता से ही है। अब प्रश्न यह है कि आजादी के नाम पर लोगों की भावनाओं और उनकी आस्था पर प्रहार कब तक चलेगा? आखिर कब तक स्वतंत्रता की ओट में नफरत भरे बयान आते रहेंगे? इन सभी प्रश्नों का जवाब दे पाना तो बहुत मुश्किल है।लेकिन यह तय है कि देश की एकता,अखंडता और संप्रभुता को आहत करने वाले ऐसे बयान आते रहेंगे।
इस पूरे मामले पर क्या कहती है भारत की न्याय व्यवस्था
ऐसे कई मामलों पर देश की अलग-अलग अदालतों ने अपने निर्णयों में इस बात का जिक्र किया है कि स्वतंत्रता और स्वच्छंदता में फर्क है। हमारी स्वतंत्रा वहीं तक है जहां किसी की भावनाओं को कोई ठेस ना पहुंचे। असीमित अभिव्यक्ति की आजादी नहीं है,इस पर कुछ प्रतिबंध भी हैं। किसी की आस्था पर प्रश्न करने या प्रहार करने का हमें कोई अधिकार नहीं है फिर चाहें हम उस धर्म को माने या ना माने। अदालतों की टिप्पणियां उन लोगों को कौन समझाए जो अपने अधिकारों का दुरुपयोग करने में महारत हासिल किए हुए हैं।